

RESEARCH: ‘मिट्टी में मत खेलो, कपड़े गंदे हो जाएंगे’, ‘साफ-सुथरे रहे’ ऐसे वाक्य आपने अक्सर आपने आस-पास के लोगों से सुना होगा। लेकिन रिसर्च में ये साबित हुआ है कि बच्चों का मिट्टी में खेलना काफी अच्छा होता है। दरअसल मिट्टी और बालू में ऐसे माइक्रोऑर्गेनिज्म (सूक्ष्म जीव) उपस्थित होते हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। मिट्टी में खेलने से बच्चों की इम्यून शक्ति बढ़ती है। मिट्टी में खेलने से बच्चों को एलर्जी और दमा की समस्या होने की आशंका कम हो जाती है। रिसर्च यह भी कहते हैं कि मिट्टी में खेलने से डिप्रेशन और एंग्जाइटी नहीं होती।
सैंड ट्रे थेरेपी
बालू में खेलना बच्चों के लिए सैंड ट्रे थेरेपी होती है। रिसर्चर्स के मुताबिक शोध यह कहती है कि, प्राकृतिक वातावरण में आजादी से घूमना बच्चों को बीमारियों के खिलाफ मजबूत बनाता है। साथ ही मिट्टी, कीचड़ और बालू बच्चों की ज्ञानेंद्रियों के विकास में मदद करती है। यह एक थेरेपी है, जो न केवल बीमारियों का इलाज करती है साथ ही बच्चों को बीमार करने से रोकती भी है।
सैंड ट्रे थेरेपी से बच्चों को भावनाएं व्यक्त करने में होती है आसानी
जो बच्चे अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर सकते हैं, उन्हें सैंड ट्रे थेरेपी से मदद मिलती है। इसमें बच्चे बालू में खेलते हैं। यह माना जाता था कि मिट्टी में खेलना हाईजीनिक नहीं है। लेकिन एक दूसरे शोध में यह बात पता चली है कि जो बच्चे ब्लू और ग्रीन स्पेस में ज्यादा समय गुजारते हैं, वे बड़े होकर बेहतर इंसान बनने की तरफ अग्रसर होते हैं। ब्लू स्पेस यानी कि समुद्र, नदी, झील के आसपास और ग्रीन स्पेस मतलब जंगल, पार्क, बाग-बगीचे जैसी हरियाली।
प्राकृतिक जगहें दिमाग को इस लेवल पर उत्तेजित कर देती हैं कि वह एक तरह से रिचार्ज होते हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे कि पहाड़ों या समंदर की यात्रा करना शरीर और दिमाग दोनों को रिफ्रेश कर देती है। इससे हम ज्यादा ऊर्जावान महसूस करते हैं।
यही नहीं एक अध्ययन में पता चला है कि, किसी शहरी जमीन जैसे फर्श, सड़क आदि पर 20 मिनट चलने की बजाय पार्क में नंगे पैर 20 मिनट चलने से ध्यान केंद्रित करने में हेल्प होती है। यहां तक कि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) से पीड़ित मरीजों में एकाग्रता बढ़ती है।