Positivity: खुद की लड़ाई से समझ में आई मुश्किलें, कैंसर से लड़ने के लिए बना दिया स्मार्ट मॉनिटरिंग इक्विपमेंट!



ये कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की, जिन्होंने कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से न सिर्फ जंग लड़ी बल्कि उसे हराया भी। इनकी कहानी यही पर खत्म नहीं होती है।

उन्होंने कैंसर को हराने के बाद एक ऐसी टेक्नोलॉजी बनाई जो आज दूसरों के काम आ रही है।

इस तकनीक की मदद से आज दूसरे मरीजों की कठिनाइयों को कम किया जा रहा है। ये तकनीक है जाने माने हेल्थटेक स्टार्टअप LifeSigns की, जिसके फाउंडर व डायरेक्टर हरि सुब्रमण्यन हैं। उन्होंने LifeSigns वायरलेस इन-हॉस्पिटल, आउट पेशेंट और एम्बुलेंस मॉनिटरिंग के लिए वियरेबल बायोसेंसर तकनीक मे अग्रणी स्टार्टअप की शुरुआत की है। वहीं सुब्रमण्यन की पहचान एक अनुभवी उद्यमी और कई सफल स्टार्ट-अप के रूप में हैं।

खुद लड़ चुके हैं कैंसर से जंग

जनवरी 2010 में हरि सुब्रमण्यन को स्टेज फोर कैंसर के बारे में पता चला था। उनके फेफड़ों और लिम्फ नोड्स में मेटास्टेसाइज़ हो गया था। इसके बाद कई ऑन्कोलॉजिस्ट के साथ बातचीत के बाद सुब्रमण्यन की संपूर्ण उपचार योजना के लिए प्रोटोकॉल तय हुआ। सर्जरी के बाद कीमो सत्र के दौरान, वे कई प्रक्रियाओं, परीक्षणों और स्क्रीनिंग से गुजरे। इसमें बहुत समय लगता था और वे सभी काफी जोखिम भरे थे।
सुब्रमण्यन भारतीय हेल्थकेयर इंडस्ट्री में मौजूद कई तरह की चुनौतियों से परिचित हुए। इन सभी में सबसे पहली है पेशेंट मॉनिटरिंग की। सुब्रमण्यन ने यह महसूस किया कि चिकित्सा समुदाय को एक ऐसी टेक्नोलॉजी की जरूरत है। चिकित्सकों को एक साथ कई मरीजों के वाइटल स्टैट्स की रियल टाइम में निगरानी करने में सहायक हो।

इलाज के दौरान आया स्टार्टअप का आइडिया

इस सभी प्रोसेस से गुजरने के दौरान उन्हें ये आइडिया आया। यह एक ऐसा स्मार्ट मॉनिटरिंग सिस्टम था जो हेल्थकेयर प्रोवाइडर तक मरीज के सभी महत्वपूर्ण वाइटल स्टैट्स को ऑटोमैटिक तरीके से पहुंचा सके और हेल्थकेयर प्रोवाइडर 
उन्हें रियल टाइम में रीड करे।

इसके बाद साल 2018 में सुब्रमण्यन अमेरिकी कंपनी LifeSignals के अधिकारियों से मिले। जो कि हेल्थकेयर इंडस्ट्री के लिए बायोसेंसर चिप तैयार करती थी। सुब्रमण्यन ने इस कंपनी के साथ मिलकर साल 2021 में LifeSigns की शुरूआत की। उनकी टीम ने इस कॉन्सेप्ट को धरातल पर उतारने के लिए लगातार 2 साल काम किया और आज उनकी मेहनत LifeSigns iMS बायोसेंसर के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। यह एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो वक्त रहते अलर्ट कर देती है। इससे चिकित्सकों को अधिक जीवन बचाने के लिए पूरा समय मिल जाता है।

कैसे काम करता है LifeSigns iMS?

यह बायोसेंसर मरीजों के महत्वपूर्ण वाइटल्स को ट्रैक करने और उन्हें अस्पताल नेटवर्क में वापस भेजने की क्षमता रखता है। जहां डॉक्टर एक नज़र में मरीज की वर्तमान स्थिति के बारे में जान सकते हैं। इसकी वजह से वक्त रहते अलर्ट भी मिल जाता है। किसी तरह की गड़बड़ी की स्थिति में समय से मरीज का इलाज शुरू हो जाता है।

यह बायोसेंसर हथेली के आकार की एक वियरेबल

इसे दिल के थोड़ा ऊपर लगाया जाता है। फिर यह वाइटल्स कलेक्ट कर अस्पताल में एक नेटवर्किंग सिस्टम में पहुंचा देता है। जो वाइटल्स को प्रोसेस करता है और इसे स्क्रीन पर वापस भेज देता है। जिसके बाद इन्हें टैब, मोबाइल या कंप्यूटर पर देख सकते हैं।

मरीज को नहाते समय भी डिवाइस को हटाने के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह डेटा ट्रांसमिट करने का काम लगातार करती है। – जैसे ईसीजी, हार्ट रेट, रेस्पिरेटरी रेट, टेंपरेचर, रोगी की मुद्रा, ब्लड प्रेशर, ऑक्सीजन सैचुरेशन की जानकारी ये देते रहता है।

अब तक LifeSigns ने भारत भर में 76 से अधिक अस्पतालों में 3,86,000 बायोसेंसर डिप्लॉय करने का काम किया है, जिनमें से कई बड़े और नामी हॉस्पिटल शामिल हैं।

LifeSigns iMS का बायोसेंसर रियल टाइम में जरूरी संकेतों की निगरानी कर चिकित्सकों को उपचार करने में मदद करता है।

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Dr. Kirti Sisodia

Content Writer

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