Shishal Kala: बस्तर अंचल की कला और संस्कृति का गौरवशाली इतिहास रहा है। यहाँ की विभिन्न शिल्प कलाएँ जैसे काष्ठ कला, टेराकोटा, बेलमेटल, और लौह शिल्प देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं। लेकिन एक और अनोखी कला है, जो धीरे-धीरे पहचान बना रही है “शीशल कला”। इस कला को न केवल संरक्षित करने बल्कि इसे विभिन्न क्षेत्रों तक पहुँचाने में शोभा बघेल एक अहम भूमिका निभा रही हैं।
बस्तर की अनमोल धरोहर
शीशल रस्सी से निर्मित कलात्मक वस्तुएँ न केवल सौंदर्य प्रदान करती हैं बल्कि इनका व्यावहारिक उपयोग भी होता है। शोभा बघेल, जो बस्तर जिले के परचनपाल गाँव की निवासी हैं, इस कला को नई दिशा देने में जुटी हुई हैं। वे न केवल स्वयं इन वस्तुओं का निर्माण कर रही हैं बल्कि अन्य महिलाओं को भी प्रशिक्षित कर रही हैं।
कलात्मक उत्पाद आकर्षण का केंद्र
शोभा बघेल शीशल रस्सी से कई तरह की चीजें तैयार करती हैं, जिनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं,
- डायनिंग मैट
- पी-कोस्टर
- नाव और झूमर
- गुड़िया और बास्केट
- साइड पर्स और झूला
- लेटर होल्डर और दीवार डेकोर आइटम्स
इन उत्पादों को वे शबरी एम्पोरियम, बिहान मड़ई, शिल्प महोत्सव, बस्तर मड़ई, चित्रकोट महोत्सव, राज्य के मॉल और अन्य प्रदेशों के सरस मेले जैसे आयोजनों में प्रदर्शित कर रही हैं।
आजीविका का मजबूत आधार
शीशल कला से शोभा बघेल हर महीने 20 से 25 हजार रुपए तक की आय अर्जित कर रही हैं। उनकी इस आमदनी से न केवल उनका परिवार खुशहाल हुआ है बल्कि उन्होंने अपने बेटे भगतसिंह बघेल को ग्रेजुएट तक पढ़ाया और बेटी पिंकी बघेल को बीएससी नर्सिंग की शिक्षा दिलाई। आज उनकी बेटी जगदलपुर के एक प्रतिष्ठित निजी अस्पताल में स्टाफ नर्स के रूप में काम कर रही हैं।
ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बना रही शोभा
शोभा बघेल न केवल अपने परिवार बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। वे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) से जुड़ी हुई हैं और महिला स्व-सहायता समूहों को प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं। उन्होंने केंद्रीय विद्यालय जगदलपुर, नवोदय विद्यालय जगदलपुर और वर्तमान में बलांगीर (ओडिशा) के नवोदय विद्यालय बेलपाड़ा में भी शीशल कला का प्रशिक्षण दिया है।
बिहान कार्यक्रम से मिली नई दिशा
शोभा बताती हैं कि 2016 में स्व-सहायता समूह से जुड़ने के बाद उनकी कला को नई पहचान मिली। बिहान योजना के तहत उन्हें रिवाल्विंग फंड, सामुदायिक निवेश कोष और बैंक लिंकेज के माध्यम से 2 लाख रुपए से अधिक की सहायता मिली। इससे न केवल उनका व्यापार बढ़ा बल्कि अन्य महिलाओं को भी अपने हुनर को आगे बढ़ाने का अवसर मिला।
वैश्विक स्तर तक पहुँचाने की कोशिश
आज शोभा और उनके समूह की महिलाएँ अपनी कला को देश-विदेश तक पहुँचाने की तैयारी कर रही हैं। उनकी यह यात्रा सिर्फ आजीविका तक सीमित नहीं है, बल्कि वे बस्तर की समृद्ध संस्कृति को एक नई पहचान दिलाने के प्रयास में लगी हुई हैं।
Positive सार
शीशल कला बस्तर अंचल की एक अनूठी परंपरा है, जिसे शोभा बघेल अपने हुनर और समर्पण से नई ऊँचाइयों तक ले जा रही हैं। उनकी यह यात्रा न केवल उन्हें आत्मनिर्भर बना रही है, बल्कि अन्य महिलाओं को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रही है। उनके प्रयासों से शीशल कला को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है बल्कि यह धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी जगह बना रही है।