Project Unnati success story: छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के छोटे से गांव हथनीकला में रहने वाले दीपक सिंह कभी सिर्फ खेती और मनरेगा की मजदूरी पर निर्भर थे। सीमित कमाई, बढ़ती जिम्मेदारियां और कोई स्थायी रोजगार नहीं—परिवार की ज़रूरतें पूरी करना मुश्किल होता जा रहा था। लेकिन उन्होंने हालात से हार मानने के बजाय कुछ नया करने की ठानी।
प्रोजेक्ट उन्नति बना गेमचेंजर
दीपक की ज़िंदगी में टर्निंग पॉइंट तब आया जब उन्हें प्रोजेक्ट उन्नति के तहत ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (RSETI), बिलासपुर में 10 दिन का प्रशिक्षण मिला। यहां उन्होंने सीखा कि कैसे वैज्ञानिक तरीके से मुर्गीपालन किया जा सकता है।
उन्होंने 10 मुर्गियों से छोटे स्तर पर शुरुआत की। पहली कमाई से ही उन्होंने धीरे-धीरे अपनी यूनिट को बड़ा करना शुरू किया।
10 से 450 मुर्गियों तक का सफर
दीपक ने मेहनत और सीखे हुए स्किल्स का सही इस्तेमाल किया। आज उनके पास 450 मुर्गियाँ हैं और उन्होंने 1 लाख रुपये की लागत से खुद का पोल्ट्री शेड भी तैयार कर लिया है। अब वह सालाना 1 लाख 20 हजार रुपये तक की आमदनी कर रहे हैं।
आत्मनिर्भरता की मिसाल
आज दीपक आत्मनिर्भर हैं, कॉन्फिडेंट हैं और अपने गांव के युवाओं के लिए रियल इंस्पिरेशन बन चुके हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि अगर सही मार्गदर्शन और प्लेटफॉर्म मिले, तो कोई भी युवा अपने दम पर कुछ भी हासिल कर सकता है।
गांव की तस्वीर भी बदली
दीपक की पहल का असर सिर्फ उनके परिवार तक सीमित नहीं है। पहले हथनीकला गांव के लोग मुर्गी खरीदने शहर जाते थे, लेकिन अब स्थानीय लेवल पर ही यह सुविधा उपलब्ध है। इससे लोकल मार्केट को बूस्ट मिला है और दूसरे ग्रामीणों में भी स्वरोजगार के प्रति जागरूकता बढ़ी है।
योजना से ज़िंदगी तक
प्रोजेक्ट उन्नति एक सरकारी योजना जरूर है, लेकिन दीपक जैसे कई युवा इसे सपनों को हकीकत में बदलने वाले प्लेटफॉर्म के तौर पर देख रहे हैं। यह स्कीम न सिर्फ रोजगार देती है, बल्कि स्वाभिमान और आत्मविश्वास भी बढ़ाती है।
Positive सार
दीपक की कहानी दिखाती है कि ग्रामीण भारत में संभावनाओं की कोई कमी नहीं है, जरूरत है तो सिर्फ उन्हें पहचानने और सही दिशा देने की। प्रोजेक्ट उन्नति जैसी योजनाएं गांवों के भीतर छिपे टैलेंट को निखार रही हैं और आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद को मजबूत कर रही हैं।