Chhind basket Jashpur: कोटानपानी की दीदियों की नई उड़ान!

Chhind basket Jashpur: छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के कोटानपानी गांव की महिलाएं आज एक पुरानी परंपरा को नया मुकाम दे रही हैं। छिंद (खजूर की सूखी पत्तियां) और कांसा (घास) से बनी हैंडमेड टोकरी अब सिर्फ पूजा में नहीं, बल्कि रोज़गार का ज़रिया बन चुकी है। यह सब संभव हुआ है बिहान मिशन और छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के सहयोग से।

मन्मति दीदी से शुरू हुआ हुनर

करीब 30 साल पहले मन्मति नाम की किशोरी ने अपने मामा के गांव पगुराबहार में इस कला को सीखा और वापस अपने गांव में इसे अपनाया। पहले यह सिर्फ घर तक सीमित था, फिर धीरे-धीरे गांव की दूसरी महिलाओं ने भी इसे सीखा और बन गईं आत्मनिर्भर।

तीन समूहों से हुई शुरुआत

2017 में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गांव में ‘हरियाली’, ‘ज्ञान गंगा’ और ‘गीता’ नाम से स्व-सहायता समूह बने। फिर 2019 में हस्तशिल्प बोर्ड से जुड़कर महिलाओं को प्रोफेशनल ट्रेनिंग मिली। मेलों में प्रदर्शनियों के जरिए इन टोकरियों को पहचान मिली और अब इनकी ऑल इंडिया डिमांड है।

एक टोकरी, कई फायदे

छिंद और कांसा से बनी ये इको-फ्रेंडली टोकरियां ना सिर्फ सुंदर हैं, बल्कि टिकाऊ भी हैं। इन्हें पूजा, फल रखने या गिफ्ट देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आज 100 से ज़्यादा महिलाएं इस काम में जुड़ी हैं और इससे हर महीने अच्छी कमाई कर रही हैं।

जशप्योर ब्रांड

अब ये टोकरियां ‘जशप्योर’ ब्रांड के तहत बिक रही हैं। इसका मतलब है – लोकल से ग्लोबल तक का सफर। सरकारी मेलों से लेकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक, इन टोकरियों की अब हर जगह मांग है।

खुद कलेक्शन, खुद मैन्युफैक्चरिंग

महिलाएं कच्चे माल का संग्रहण भी खुद करती हैं और उसे प्रोसेस कर तैयार उत्पाद बनाती हैं। छिंद और कांसा प्राकृतिक रूप से उपलब्ध होते हैं, जिससे इनका काम साल भर चलता रहता है। खास बात यह है कि महिलाएं 150 रुपये प्रति किलो की दर से कच्चा माल भी बेच रही हैं।

टोकरी, आत्मनिर्भरता की पहचान

अब कोटानपानी और आस-पास के गांवों के 15 से ज्यादा समूह इस काम से जुड़ चुके हैं। इससे गांव की महिलाएं न केवल अपने घरों की आर्थिक हालत सुधार रही हैं, बल्कि एक सांस्कृतिक परंपरा को जिंदा भी रखे हुए हैं।

बुनावट में बसी उम्मीद

यह टोकरी सिर्फ एक हस्तशिल्प उत्पाद नहीं, बल्कि एक सशक्त महिला की कहानी है। छत्तीसगढ़ सरकार की योजनाएं और गांव की महिलाओं की मेहनत ने मिलकर दिखा दिया है कि परंपरा में ही है भविष्य की ताकत।

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Rishita Diwan

Content Writer

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