Bastar Dairy Business: बस्तर की नई पहचान छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध जनजातीय संस्कृति के लिए विश्व विख्यात है, अब एक नई क्रांति का गवाह बन रहा है। यह क्रांति है ‘श्वेत क्रांति’। यहाँ की महिलाएं अब केवल पारंपरिक खेती या वनोपज तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे आधुनिक डेयरी व्यवसाय को अपनाकर आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रही हैं। राज्य सरकार की मंशा और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के तकनीकी सहयोग से बस्तर के सुदूर अंचलों में दूध की नदियाँ बहने की तैयारी हो चुकी है।
पायलट प्रोजेक्ट और मुख्यमंत्री की पहल
Bastar Dairy Business
बस्तर संभाग के कोण्डागांव और कांकेर जिलों में डेयरी व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष पायलट परियोजना संचालित की जा रही है। इस योजना का औपचारिक शुभारंभ मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने 01 जून 2025 को कोण्डागांव जिले के भोंगापाल गांव से किया था। योजना का मुख्य उद्देश्य जनजातीय परिवारों, विशेषकर महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़कर उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाना और कुपोषण से लड़ना है।
साहीवाल गायों से बढ़ी दूध की मिठास
इस योजना के तहत हितग्राहियों को उन्नत नस्ल की ‘साहीवाल’ गायें प्रदान की जा रही हैं। NDDB डेयरी सर्विसेस द्वारा इन गायों का चयन विशेष रूप से राजस्थान और पंजाब के क्षेत्रों से किया गया है। साहीवाल गाय अपनी उच्च दूध उत्पादन क्षमता (8-10 लीटर प्रतिदिन) और भारतीय जलवायु के प्रति अनुकूलता के लिए जानी जाती है। अब तक 47 महिलाओं के ऋण आवेदन स्वीकृत किए जा चुके हैं, जिनमें से 24 महिलाओं को 36 दुधारू पशु वितरित किए जा चुके हैं।
अनुदान और बैंक ऋण का सहयोग
यह योजना एक पारदर्शी और सुलभ आर्थिक मॉडल पर आधारित है। एक डेयरी इकाई (2 दुधारू पशु) की कुल लागत लगभग 1.40 लाख रुपये है।
- 50 प्रतिशत अनुदान, राज्य सरकार द्वारा 70 हजार रुपये की सब्सिडी दी जा रही है।
- 40 प्रतिशत बैंक ऋण, छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी दुग्ध महासंघ ने छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक (CRGB) के साथ समझौता (MoU) किया है, जो रियायती दरों पर 4 साल के लिए ऋण उपलब्ध कराता है।
- 10 प्रतिशत हितग्राही अंशदान, शेष राशि का वहन हितग्राही स्वयं करते हैं। खास बात यह है कि ऋण की किश्तें सीधे दूध के बिल से काट ली जाती हैं, जिससे महिलाओं पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता।
प्रतिमाह 13,000 रुपये की निश्चित आमदनी
इस योजना का सबसे सुखद पहलू इसकी आय है। वर्तमान में एक महिला हितग्राही प्रतिदिन लगभग 12 लीटर दूध दुग्ध समिति में जमा कर रही है। घरेलू उपयोग के बाद बचे हुए अतिरिक्त दूध को दुग्ध महासंघ निर्धारित मूल्य पर क्रय करता है। इससे प्रत्येक महिला को प्रति माह औसतन 13,000 रुपये की आय हो रही है। यह राशि न केवल उनके परिवार के पोषण स्तर में सुधार कर रही है, बल्कि उन्हें समाज में एक ‘उद्यमी’ के रूप में पहचान भी दिला रही है।
1 लाख लीटर का प्रसंस्करण संयंत्र
बस्तर संभाग में सहकारिता का ढांचा तेजी से मजबूत हो रहा है। वर्तमान में 95 दुग्ध समितियों के माध्यम से 15,060 लीटर दूध प्रतिदिन संकलित किया जा रहा है। सरकार की योजना अगले 5 वर्षों में 400 नए गांवों को दुग्ध समितियों से जोड़ने की है। आने वाले समय में,
- 48 हजार लीटर प्रतिदिन दुग्ध संकलन का लक्ष्य रखा गया है।
- 28 हजार लीटर क्षमता के नए शीतलीकरण केंद्र (Chilling Centers) स्थापित होंगे।
- बस्तर जिले में 1 लाख लीटर क्षमता का एक नवीन आधुनिक दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र (Milk Processing Plant) लगाया जाएगा।
व्यापक सहायता और प्रशिक्षण
योजना केवल गाय देने तक सीमित नहीं है। हितग्राहियों को एक वर्ष तक निःशुल्क सहायता दी जाती है, जिसमें पशु बीमा, स्वास्थ्य निगरानी उपकरण, उत्तम चारा (साइलेज), पशु आहार और खनिज मिश्रण शामिल हैं। साथ ही, पशुपालन के वैज्ञानिक तरीकों पर विशेषज्ञों द्वारा निरंतर प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
Positive सार
बस्तर में डेयरी व्यवसाय के माध्यम से आ रहा यह बदलाव केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक भी है। जब एक महिला आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती है, तो उसका प्रभाव पूरे परिवार और आने वाली पीढ़ियों पर पड़ता है। ‘ऑपरेशन फ्लड’ की तर्ज पर बस्तर में शुरू हुई यह पहल आने वाले समय में छत्तीसगढ़ को दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी राज्यों की श्रेणी में खड़ा कर देगी।
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