Waste Management: भारत के कई राज्यों में गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। गन्ने की खेती करने वाले किसान या फिर गन्ना इस्तेमाल करने वाले लोग गन्ने से रस निकाल तो लेते हैं। लेकिन उसकी खोई यानी छिलका का कोई काम नहीं करते हैं। यानी कि छिलका फेंक देते हैं। कई लोग इसे खेतों में ही जलाकर नष्ट करते हैं। इससे प्रदूषण फैलता है। लेकिन बिहार के नवगछिया के रहने वाले रितेश ने गन्ने की खोई से एक शानदार बिजनेस शुरू किया है। इस व्यापार से वो लाखों रुपए कमा रहे हैं। जानते हैं रितेश के बिजनेस के बारे में।
गन्ने के वेस्ट से बना रहे कप-प्लेट
रितेश गन्ने से निकलने वाले वेस्ट से कप, प्लेट, कटोरी बनाते हैं। इसके लिए रितेश पहले गन्ने के वेस्ट को प्रोसेस करते हैं और इको फ्रेंडली सामान बनाने में इस्तेमाल करते हैं। आज उनके प्रोडक्ट्स बिहार सहित मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा जैसे राज्यों में भी जाते हैं।
केमिकल का नहीं करते हैं इस्तेमाल
रितेश कहते हैं कि गन्ने के खोई, केले थंब, धान की भूसी और सब्जी साथ ही फलों के वेस्ट से तो कप तैयार किए जाते हैं वो पूरी तरह केमिकल फ्री होते हैं। इनमें वो किसी भी तरह का केमिकल का उपयोग नहीं करते हैं। रितेश कहते हैं कि उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय सबौर से इंटर की पढ़ाई एग्रीकल्चर से की है जिसका फायदा उन्हें मिला है। भले ही वो किसी वजह से अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए पर वो भविष्य में इस तरह के और भी इनोवेशन पर काम करना चाहते हैं।
लोगों को पसंद आ रही क्रिएटिविटी
भले ही बाजार में डिस्पोजल थाली, प्लेट, कटोरा मिलने लगे हों। लेकिन लोगों को गन्ने की खोई से बने उत्पाद खूबसूरत और टिकाऊ होने के कारण काफी पसंद आ रहे हैं। ग्राहक भी दुकान पर पहुंचते ही सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प पर बात करते हैं और गन्ने के वेस्ट से बने इस प्रोडक्ट को पसंद करते हैं।
कैसे सीखा गन्ने के वेस्ट से प्रोडक्ट तैयार करना?
शुरूआत में उन्होंने कुछ नया करने का सोचा फिर उन्हें यूट्यूब में गन्ने के वेस्ट का सही इस्तेमाल के रूप में कप प्लेट बनाना दिखाई दिया। उन्होंने यूट्यूब से सीखकर अपना बिजनेस शुरू कर लिया। रितेश का ये प्रोडक्ट लोगों को काफी पसंद आ रहा है। साथ ही जो शुगर मरीज होते हैं वो भी इसे बहुत ज्यादा पसंद कर रहे है क्योंकि वो चीनी डालकर चाय नही पी पाते है और अगर वो गन्ने के खोई से बने कप में चाय पीते है तो उनको हल्के मिठास मिल जाती है।
Positive सार
मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना से 6 लाख का लोन लेकर रितेश ने ये काम शुरू किया था। अभी रितेश के उद्योग में उनकी मां उनका सहयोग करती है। रितेश का ये इनोवेशन पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।