Save River की एक अनोखी मुहीम छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के बेलगहना गांव में चलाई जा रही है। यहां पर्यावरण संरक्षण के ऐसे तरीकों पर काम किया जा रहा है जिसकी तारीफ देशभर में की जा रही है। दरअसल ये पूरी कहानी है श्रेयांश बुधिया नाम के एक युवा और उनकी ही तरह के गांव के कुछ लोगों की जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कुछ बेहतर करने की चाह में काम कर रहे हैं, जानते हैं पूरी कहानी….
बिलासपुर जिले में तखतपुर ब्लॉक में एक गांव है बेलगहना। ये गांव छत्तीसगढ़ के दूसरे गांवों की तरह ही सामान्य गांव की तरह ही नजर आता है। लेकिन इस गांव की खास बात है यहां के लोगों का पर्यावरण संरक्षण के प्रति संजीदा होकर काम करना। दरअसल प्राकृतिक खूबसूरती से परिपूर्ण इस गांव की तस्वीर तब बदली जब गांव का ही एक युवा अपनी अमेरिका की नौकरी को छोड़कर गांव लौट आया। उसने गांव लौटकर न सिर्फ गांव के लोगों को जागरूक किया बल्कि गांव की ग्रामसभा से नदी बचाने का एक संविधान भी पारित करवा दिया।
संविधान का क्या फायदा हुआ?
दरअसल पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा पहली बार हुआ है जब गांव के प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए ग्रामसभा ने एक नियम ही बना दिया है। जिसे गांव का संविधान कहा जा रहा है। इस संविधान के मुताबिक गांव की नदी के आस-पास कचरा फेंकना, खेतों में रासायनिक खाद या दवाओं का इस्तेमाल करना, गांव के आस-पास प्लास्टिक कचरा फैलाना मना है। नियमों का पालन नहीं करने पर जुर्माना और सजा का भी प्रावधान है। इसके साथ ही गांव के मवेशियों को चराने के लिए भी दिन निर्धारित किए गए हैं।
फिर से उपज रही हैं हरियाली और सांस ले रही है नदीं
श्रेयांश बुधिया और गांव वालों की पहल से अब यहां पर बहने वाली घोंघा नदी काफी साफ हो गई है। दरअसल कुछ सालों पहले कचरे और प्रदूषण की वजह से नदी का बहाव कम हो गया था। इस गांव का व्यवसाय ही मुख्यरूप से बाड़ी और सब्जी भाजी उगाना था, लेकिन पानी नहीं होने की वजह से प्राकृतिक संसाधनों पर बुरा असर पड़ रहा था। लेकिन अब गांव के संविधान की वजह से फिर से बेलगहना आबाद होने लगा है। इस गांव के इकोसिस्टम के लिए काम कर रहे बेलगहना के श्रेयांश कहते हैं कि जब वो गांव लौटे तो उन्हें अहसास हुआ कि नेचर से हम क्या छीन रहे हैं और इसके लिए किसी को तो सामने आना था।
क्या कहता है बेलगहना का संविधान?
- घोंघा नदी और गांव में प्लास्टिक कचरा फेंकना मना है।
- नदी के डूबान वाले क्षेत्रों में रासायनिक खाद या दवाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
- मवेशियों को चराने के लिए निर्धारित दिनों और जगहों का पालन किया जाए।
- पानी में रहने वाले जीवों की पहचान की जाएगी और उन्हें ही पकड़ा जाएगा जिनके लिए ग्रामसभा इजाजत दी जाएगी, ताकि बायोडायवर्सिटी को बचाया जा सके।
- वृक्षों के संरक्षण के प्रति हर ग्रामीणों की जिम्मेदारी होगी वहीं वृक्षारोपण पर भी खास ध्यान दिया जाना चाहिए।
- किसी भी तरह के एनीकट या नदी पर निर्माण के लिए पर्यावरण के नॉर्म्स पर ध्यान दिया जाएगा कि उससे गांव के इकोसिस्टम पर कोई विपरित प्रभाव नहीं पड़ेगा इसके बाद रिपोर्ट देखकर ग्रामसभा इजाजत देगी।
Positive सार
ये गांव इस बात की सीख देता है कि कुछ करने की चाह के लिए सरकारी तंत्र या गवर्मेंट को आगे आने की जरूरत नहीं है बस सही नजरिया और बेहतर नियत सब काम कर देती है। पर्यावरण संरक्षण की इस खास पहल को छत्तीसगढ़ के दूसरे राज्यों को तो अपनाना चाहिए साथ ही देश के लिए भी ये एक मॉडल बन सकता है।