Nivaje Village Maharashtra: महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में स्थित निवाजे गांव आज अपनी अनोखी पहचान बना रहा है। इस गांव का लगभग 48% हिस्सा जंगलों से घिरा हुआ है। अब पहले की तरह यह गांव खाना बनाने के लिए लकड़ियों पर निर्भर नहीं है। लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल गई है। अब यहां ना तो लकड़ी जलाने की जरूरत पड़ती और ना ही एलपीजी सिलेंडरों की जरूरत पड़ती है। आज निवाजे गांव “कार्बन न्यूट्रल गांव” बनने की राह पर है। आइए जानते हैं यह सब कैसे संभव हो पाया है।
बायोगैस से बदलती जिंदगी
पिछले सालों में निवाजे (Nivaje Village)गांव में एक बड़ा बदलाव हुआ है। यहां के किसान अब कैमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग नहीं करते, बल्कि ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल करते हैं। गांव में 140 सक्रिय बायोगैस यूनिट है। इस पहल के पीछे है भगीरथ ग्रामविकास प्रतिष्ठान (BGP) नामक एक एनजीओ का बड़ा सहयोग है। इस एनजीओ को एक डॉक्टर दंपति चला रहे हैं।
2012 में आई पहली बायोगैस यूनिट
निवाजे (Nivaje Village) में पहली बार 2012 में बायोगैस यूनिट (Biogas Unit)लगाई गई। ये पहल गांव के दूसरे लोगों को भी पसंद आया। पहले गांव की महिलाएं चूल्हे पर खाना बनाती थीं, जिससे धुआं उठता था और आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ होती थी। लेकिन अब बायोगैस स्टोव पर खाना बनाने से उनकी जिंदगी और भी आसान हो गई है। अपने समय को महिलाएं पापड़ और अचार बानाने जैसे कामों में लगा रही हैं।
ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में भी हुआ सुधार
बायोगैस (carbon neutral village) के लिए गाय का गोबर चाहिए होता है इसलिए गांव के लोगों ने गाय पालने पर खास ध्यान दिया। गांव में हर परिवार के पास लगभग 4 से 5 गाय हैं। रोजाना 200 लीटर दूध का उत्पादन होता है। गांव का पूरा दूध शहर में बेचने के काम आता है। इन सबके चलते निवाजे अब आत्मनिर्भर हो गया है। यहां के हर घर में आपको बांस के पेड़ भी देखन को मिलेंगे जो कार्बनडाइ ऑक्साइड को सोखने का काम करते हैं।
निवाजे गांव की यह कार्बन न्यूट्रल विलेज ()बनने की यात्रा एक प्रेरणा के रूप में काम कर रही है। जो दिखाती है कि सही दिशा में सामूहिक प्रयासों करने से कोई काम आसानी से सफलता तक पहुंचता है।