गोरखपुर और आस-पास के इलाकों में होने वाला विशेष स्वाद और औषधीय गुणों से भरपूर पनियाला और पानीदार की खेती हो रही है। पनियाला के संरक्षण और संवर्धन में राज्य सरकार काफी काम कर रही है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद
इसके लिए कुछ दिनों पहले लखनऊ स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने गोरखपुर और पड़ोसी जिलों के पनियाला बाहुल्य क्षेत्रों का सर्वे कर सही परिस्थितियों के बारे में गहन चिंतन किया।
इस दौरान रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों ने कुछ स्वस्थ पौधों से फलों के नमूने लिए और उन पर काम करना शुरू किया। वैज्ञानिकों ने बताया कि अब संस्था की प्रयोगशाला में इन फलों का फिजिकल और केमिकल एनालिसिस कर उनमें उपलब्ध डायवर्सिटी का पता लगाया जाएगा।
कलमी विधि से तैयार हो रहे पौधे
उपलब्ध प्राकृतिक वृक्षों से सर्वोत्तम वृक्षों का चयन कर उनको संरक्षित करने के साथ कलमी विधि से नए पौधे बनाए जायेंगे। इनको किसानों और बागवानों के माध्यम से बढ़ाया जाएगा। यहां ये याद रखना जरूरी है कि पनियाला को ‘इंडियन कॉफी प्लम’ और ‘पानी आंवला’ के नाम से भी जानते हैं। इसके पेड़ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज क्षेत्रों में पाये मिलते हैं। पांच छह दशक पहले इन क्षेत्रों में बहुतायत में मिलने वाला पनियाला अब लगभग गायब हो रहे हैं।
एंटीऑक्सीडेंट एंटीबैक्टीरियल गुणों से भरपूर
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक बताया कि पनियाला के पत्ते, छाल, जड़ों एवं फलों में एंटी बैक्टिरियल प्रापर्टी पाई जाती है। इससे कई रोगों में इनसे लाभ होता है। स्थानीय स्तर पर पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इनसे खून आने, कफ, निमोनिया और खरास आदि में फायदा मिलता है। इसके फल लीवर के रोगों में भी उपयोगी होते हैं।
पनियाला के फल में विभिन्न एंटीऑक्सीडेंट के गुण होते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के छठ त्योहार पर इसके फल 300 से 400 रुपये किलो तक बिकते हैं। इन्हीं कारणों से इस फल को भारत सरकार द्वारा गोरखपुर का भौगोलिक उपदर्श (जियोग्राफिकल इंडिकेटर) बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पनियाला के फलों को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक प्रिजर्व किए जा सकते हैं। लकड़ी, जलावन और कृषि कार्यो के लिए ये उपयोगी होते हैं।
ऐसा होता है पनियाल (इंडियन कॉफी प्लम)
पनियाला जामुनी रंग का होता है। इसके साइज की बात करें तो ये जामुन से कुछ बड़ा और आकर में लगभग गोल पनियाला का स्वाद, कुछ खट्टा-मीठा और थोड़ा सा कसैला की तरह होता है। आज से चार-पांच दशक पहले यह गोरखपुर का खास फल माना जाता था। नाम के अनुरूप ये स्वाद में भी काफी अच्छा होता था।
आर्थिक महत्व
पनियाला परंपरागत खेती से अधिक फायदेमंद होता है। कुछ साल पहले करमहिया गांव के एक सभा के यूपी स्टेट का बायोडायवर्सिटी बोर्ड पहुंचा था। उनके पास पनियाला के नौ पेड़ थे। अक्टूबर में आने वाले फल के दाम उस समय प्रति किग्रा 60-90 रुपये तक थे। प्रति पेड़ से उस समय उनको करीब 3300 रुपये की कमाई होती थी।