भारत की विविध संस्कृति में त्योहारों का विशेष स्थान है, और हर राज्य की अपनी अनोखी परंपराएं हैं। छत्तीसगढ़ भी ऐसा ही एक राज्य है, जहाँ कृषि और पशुपालन पर आधारित परंपराएं जनजीवन से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
इन्हीं में से एक है – पोला त्योहार, जो विशेष रूप से कृषक समुदाय द्वारा बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
पोला क्या है?
पोला एक कृषि प्रधान त्योहार है जो मुख्य रूप से बैलों के सम्मान और उनकी सेवा के लिए मनाया जाता है।
यह पर्व भाद्रपद अमावस्या (अगस्त-सितंबर) को मनाया जाता है, जब खेतों में धान की बुवाई पूरी हो चुकी होती है और किसान थोड़ी राहत की सांस लेते हैं।
बैल: किसान का सच्चा साथी
पोला के दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं, उन्हें सजाते हैं — उनके सींगों में तेल लगाकर उन्हें रंगते हैं, गले में नई रस्सियाँ और घंटियाँ पहनाते हैं, और उनके माथे पर टीका करते हैं।
यह दिन बैलों को विश्राम देने और उनके प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है।
पारंपरिक खेल और उत्सव
- गांवों में बैल दौड़, बैलगाड़ी सजावट और लोक गीतों की धूम रहती है।
- बच्चे मिट्टी के बैल (नंदिया) बनाकर खेलते हैं, और उन्हें घर-घर घुमाकर पोला की खुशियाँ बाँटते हैं।
- महिलाएँ घर के आँगन को सुंदर रंगोली से सजाती हैं और पवित्र भोजन बनाकर प्रसाद के रूप में चढ़ाती हैं।
पोला का सांस्कृतिक महत्व
पोला सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति और मेहनत के सम्मान का प्रतीक है।
यह सिखाता है कि मनुष्य को सिर्फ अपने परिवार ही नहीं, अपने पशु-पक्षियों और प्रकृति के प्रति भी कृतज्ञ रहना चाहिए।
इस दिन किसान यह मानते हैं कि अगर बैल ना हों, तो खेत की जुताई और अन्न की प्राप्ति संभव नहीं।
समर्पण का पर्व
पोला त्योहार छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जुड़ा, संवेदना, श्रम और समर्पण का पर्व है।
यह आने वाली पीढ़ियों को यह याद दिलाता है कि जो साथ हमें थककर भी नहीं छोड़ते – उनके लिए एक दिन थम कर “धन्यवाद” कहना ज़रूरी है।

