Rani Rasomani: 200 साल पहले शिक्षा की अलख जगाने वाली जमींदार!

Rani Rasomani: भारतीय इतिहास के पन्ने कई रोचक और गौरवशाली कथाओं से भरी है। इन कथाओं में जितनी हिस्सेदारी महान पुरुष क्रांतिकारियों, योद्धाओं और शासकों की रही है उतनी ही हिस्सेदारी महान, बलिदानी और वीर महिलाओं की भी है, जिन्होंने हर दौर में भारतीय नारियों की शक्ति का परिचय करवाया है। ऐसी ही कहानियों की एक नायिका रानी रासोमनी भी हैं। उनका नाम एक ऐसी जमींदार के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने शिक्षा के लिए काफी काम किया और कॉलेज बनवाए। जानते हैं उनकी कहानी..

रानी रासोमनी के बारे में

रानी रासोमनी (Rani Rasomani) का जन्म उत्तर चौबीस परगना जिला में हालीशहर के कोना गांव में एक दलित परिवार में हुआ। 11 साल की छोटी सी उम्र में उनका विवाह कोलकाता के एक धनी जमींदार बाबू रामचन्द्र दास के साथ हुआ। लेकिन जल्द ही उनके पति की मृत्यु हो गई और जमींदारी की जिम्मेदारी रानी रासमनी पर आ गई।

क्यों याद की जाती हैं रासोमनी?

इतिहास में रानी रासोमनी और अंग्रेजों का एक किस्सा काफी प्रचलित है, जिसकी वजह से रानी रासोमनी नाम बंगाल ही नहीं पूरे भारत में बड़े अदब से लिया जाता है। बात 1840 के आस-पास की है, जब अंग्रेजों ने मछुआरों पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया। रानी रासमनी को जब इस बात का पता लगा तो उन्होंने अंग्रेजों के क्षेत्र तक जाने वाली हुगली नदी के पानी को ही बांध बनाकर रोक दिया। बाद में अंग्रेजों ने हार मानकर मछुआरों पर से टैक्स हटा दिया।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर का करवाया निर्माण

रानी रासोमनी (Rani Rasomani) ही वो व्यक्तित्व हैं जिन्होंने कोलकाता के सबसे प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर का निर्माण करवाया था। रानी दलित परिवार से संबंध रखती थीं इसीलिए उन्हें भी कभी मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। रानी ने छुआछूत जैसी कुरितियों को खत्म करने का कार्य किया। जिसके लिए उन्हें कई विरोध और अपमान भी सहने पड़े। लेकिन उनके विश्वास को कोई भी विकट परिस्थिति तोड़ नहीं पाई और अंतत: साल 1855 में लोगों के लिए इस मंदिर को खोल दिया गया।

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शिक्षा की हिमायती रानी रासोमनी

रानी के विचार थे, कि शिक्षा ही भारत को गुलामी के जंजीर से आजाद करवा सकती है इसीलिए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी कई अतुलनीय काम किए। उन्होंने आज के प्रेसिडेंसी कॉलेज जो उस समय हिन्दू कॉलेज के नाम से जाना जाता था। उसके संरक्षण और संवर्धन में लाखों खर्च किए। इम्पीरियल लाइब्रेरी जिसे वर्त्तमान में भारतीय राष्ट्रीय पुस्तकालय के नाम से जाना जाता है, उन्हीं की देन है। यही नहीं रानी रासमनी ने सड़कें और बगीचों का निर्माण करवाया, सुबर्णरेखा नदी से पुरी तक तीर्थ यात्रियों के सफर के लिए सड़क बनवाई। प्रजाहित में कई बड़े काम किए। यही वजह है कि आज रानी रासमणि का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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