Free library से बदल रही है जिंदगी, अब बच्चे किताब और रोटी के बीच में किसी एक को नहीं चुनते!

Free library: दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो दूसरों के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। ऐसे लोग न सिर्फ सोसाइटी में Positive बदलाव लाते हैं बल्कि अपने काम से कई लोगों को प्रेरित भी करते हैं। ऐसी ही एक कहानी है ऋतूपूर्णा नेओग की जिनके बारे में हाल ही में एक प्रतिष्ठित वेबसाइट पर छपी, लोग अब उनके बारे में जान रहे हैं।

वो अपना साक्षात्कार देते हुए कहती हैं कि “मैं इसलिए फ्री लाइब्रेरी चला रही हूं ताकि लोगों को भूख और किताबों में से किसी एक का चुनाव न करना पड़े। मैं बचपन से ही काफी शर्मिले मिजाज की थी तब मैं खुद को लाइब्रेरी में छुपा लेती थी लाइब्रेरी मुझे सुकून वाली जगह लगती थी। तभी मुझे लाइब्रेरी की अहमियत पता चली।”

लाइब्रेरी पसंदीदा जगह 

बचपन में लाइब्रेरी के पीछे छुपने वाली ऋतूपूर्णा नेओग को किताबों से प्रेम है। आज ऋतुपर्णा गांव-गांव में जाकर फ्री लाइब्रेरी बनाती हैं ताकि शिक्षा का अभाव किसी को भी झेलना न पड़े। असम की ऋतूपूर्णा का बचपन किसी आम बच्चे जैसा ही खूबसूरत था। 

किताबों ने बनाया मजबूत 

बड़े होते-होते कई बार ऋतुपर्णा को जेंडर डिस्क्रिमिनेशन झेलना पड़ा। ये दौर उनके लिए काफी मुश्किलों भरा रहा। वो सोसाइटी में समानता चाहती थीं और उन्होंने इसे किताबों और ज्ञान के सहारे हासिल किया। शिक्षा की ताकत और उनके माता-पिता के साथ ने उन्हें कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया। वह शिक्षा की ताकत को बखूबी समझती थीं इसीलिए उन्होंने गांव में फ्री लाइब्रेरी बनाने का सपना देखा और आज उसे पूरा कर रही हैं।  

सोशल वर्क की पढ़ाई ने दिया हौसला 

ऋतुपर्णा बड़ी होते-होते ये जान गई थीं कि उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में सोशल वर्क करना है। इसीलिए ऋतुपर्णा ने असम की अलग-अलग सोशल वर्क सोसाइटी के साथ काम किया और नौकरी करते वक्त भी वह अपने लाइब्रेरी खोलने के सपने को नहीं भूली। वह अपनी सैलरी से हर महीने कुछ किताबें खरीद कर जमा करती थीं। साल 2020 में उन्होंने अपने गांव में लाइब्रेरी बनाने का फैसला किया लेकिन तब देश कोविड और लॉकडाउन जैसी परिस्थितियों में था। 

किताबों से हो रहा बदलाव

इस समय भी ऋतूपूर्णा ने हार नहीं मानी उन्होंने उस समय सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके ऑनलाइन स्टोरीटेलिंग का काम शुरू किया। कोरोना के समय असमिया भाषा में उनकी कहानियां लोगों को काफी रोचक लगी। उनके प्रोग्राम को लोगों ने सुना। जिसके बाद उन्होंने अपनी 600 किताबों और अपने माता-पिता की मदद से गांव में पहली फ्री लाइब्रेरी Kitape Katha Koi की शुरुआत की।

सिर्फ 600 किताबों से शुरू हुई उनकी लाइब्रेरी में आज 1200 से ज्यादा किताबें हैं जो उनके जैसे दूसरे किताब प्रेमियों की मदद से ही सफल हो पाया। ऋतुपर्णा असम के दो और गांवों में दो फ्री लाइब्रेरी के तहत 200 से अधिक बच्चों को शिक्षा से जोड़ रही हैं। इतना ही नहीं वह समय-समय अलग गांवों में जाकर वो  स्टोरीटेलिंग प्रोग्राम भी चलाती हैं। 

Positive सार

ऋतुपर्णा आज Gender Discrimination विषय में जागरूकता लाने के लिए 40 से अधिक यूनिवर्सिटीज और इंस्टिट्यूट्स में जाकर 10 हजार से ज़्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचा रही हैं। उनकी कहानी ये बताती है कि अगर कुछ बेहतर करने की ठान लो तो कोई परेशानी आपको रोक नहीं सकती है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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