खुद पढ़ पाईं सिर्फ 5वीं लेकिन गांव की लड़कियों को उच्च शिक्षा से जोड़ रही हैं ये सरपंच!

ये बिल्कुल जरूरी नहीं है कि एक काफी पढ़ा-लिखा व्यक्ति ही लीडरशिप कर सकता है। आगे बढ़ने की चाह, कुछ बेहतर करने का जुनून और समय के साथ चलने वाले व्यक्ति हमेशा समाज को एक बेहतर दिशा देता है। ऐसी ही एक कहानी है बुरहानपुर के आदिवासी क्षेत्र की सरपंच कमलाबाई की। जिन्होंने खुद तो सिर्फ 5वीं तक की ही पढ़ाई की है लेकिन उन्होंने अपने गांव की बच्चियों की शिक्षा के लिए काफी काम भी किया। 

क्या है पूरी कहानी?

बुरहानपुर के आदिवासी बाहुल्य झांझर गांव में कमलाबाई रहती हैं। वे एक ऐसे इलाके की सरपंच हैं जहां पर पिछले कई सालों तक लड़कियों को सिर्फ रूढ़िवादी सोच की वजह से पढ़ने नहीं दिया गया। इस गांव में लड़कियां सिर्फ पांचवीं क्लास तक ही पढ़ पाती थीं। लेकिन अब ऐसा नहीं है। कमला ने अपने दम पर अकेले इस आदिवासी समाज में शिक्षा की लौ जलाई है। कमलाबाई ने इन हालातों को बदलने का बीड़ा उठाया और आज गांव की 50 से ज़्यादा बेटियां स्कूल और कॉलेज में पढ़ रही हैं।
कमला के प्रयास से मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की प्रेरणादायक महिला कमला बाई, ने आज 50 से ज़्यादा लड़कियों को स्कूल भेजा है। कई लड़कियां गांव के बाहर शहर जाकर कॉलेज में भी पढ़ाई कर रही हैं।


कमला के सरपंच बनने से पहले करीब दस साल पहले तक गांव की बच्चियों को छोटी उम्र में ही घरेलू कामकाज में लगाया जाता था। उनकी जल्दी शादी कर दी जाती थी। यही वजह थी कि गांव में शिक्षा का स्तर बेहद खराब था।

ऐसे हुई शुरुआत?

कमला बाई ने समाज की इस कुरीति को दूर करने के लिए काफी मेहनत की। शुरुआत उन्होंने साल 2015 में की। वो गांव के हर घर में गईं और लोगों को शिक्षा के बारे में समझाया। इससे भी ज़्यादा असर नहीं पड़ा, तो उन्होंने अपने घर से ही इसकी पहल की। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को शहर के स्कूल में भेजकर लोगों के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया। समाज के लोगों से लड़ाई की। लोगों के ताने सुने लेकिन धीरे-धीरे लोगों को उनकी बातों पर भरोसा होने लगा और वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजने लगे।


आज गांव का माहौल पूरी तरह बदल चुका है। लड़कियां सिर्फ स्कूल ही नहीं जा रही हैं बल्कि उच्च शिक्षा के लिए शहर के कॉलेज भी जा रही हैं। कमलाबाई ने एक बेवसाइट को दिए साक्षात्कार में बताया है कि बेटियों के ख़िलाफ़ इस सोच की वजह से ही उनके माता-पिता ने भी उन्हें गांव से बाहर स्कूल नहीं जाने दिया इसलिए वे खुद सिर्फ़ पांचवीं तक ही पढ़ाई कर पाई। जल्दी ही उनकी शादी हो गई। 

कमलाबाई उस बदलाव की जीती-जागतीं तस्वीर हैं जिसने आदिवासी समाज के उस क्षेत्र को शिक्षा से जोड़ा और एक सकारात्मक बदलाव की नींव बनीं। वे हर उस महिला के प्रेरणा हैं जो विपरित परिस्थितियों से हार मानना चाहती हैं। उनके काम बताते हैं कि दृढ़ निश्चय और बेहतरी के लिए किया हुआ काम एक दिन सफल जरूर होता है।

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Dr. Kirti Sisodia

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