Dhunuchi Dance: क्या है धुनची नृत्य का महत्व? भारत में कहां है प्रसिद्ध?

Dhunuchi Dance: दुर्गा पूजा भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे देवी दुर्गा के सम्मान और महिषासुर पर उनकी विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। बंगाल में यह त्योहार बेहद धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया जाता है, जहां हर गली, मोहल्ला और पंडाल देवी की भक्ति में सराबोर दिखता है। इसी पूजा का एक अनोखा और पारंपरिक पहलू है धुनुची नृत्य (Dhunuchi Dance), जो पूरे उत्सव को और भी जीवंत और दिव्य बना देता है। यह नृत्य सप्तमी से आरंभ होकर महानवमी के दिन अपने चरम पर पहुंचता है।

धुनुची नृत्य का महत्व

धुनुची नृत्य का विशेष महत्व दुर्गा पूजा के दौरान इसलिए भी है क्योंकि यह देवी के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। आइए जानते हैं इस नृत्य के इतिहास, महत्व, और इसकी विधि के बारे में विस्तार से।

क्या है यह अनोखा नृत्य?

धुनुची नृत्य एक पारंपरिक बंगाली नृत्य है, जिसे दुर्गा पूजा के दौरान मां दुर्गा के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इसमें नर्तक एक विशेष प्रकार के मिट्टी के बर्तन ‘धुनुची’ का उपयोग करते हैं, जिसमें धूप, नारियल की जटाएं, चावल और अन्य हवन सामग्री जलाई जाती है। धुनुची से निकलने वाली सुगंध और धुआं वातावरण को पवित्र बनाते हैं और माना जाता है कि यह देवी को प्रसन्न करता है।

ताल और लय का संबंध

नर्तक धुनुची को अपने हाथ, सिर, या कभी-कभी मुंह में पकड़कर संतुलित करते हुए नृत्य करते हैं। इस नृत्य में ताल, लय और मुद्राओं का बेहद अनूठा संगम देखने को मिलता है, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। इस नृत्य का प्रदर्शन खासतौर से सप्तमी, अष्टमी और महानवमी के दिन किया जाता है, जिसमें महानवमी का दिन इस नृत्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

देवी दुर्गा की प्रसन्नता का दिन

महानवमी, नवरात्रि के अंतिम दिनों में से एक है, जो देवी दुर्गा के महिषासुर पर विजय की पूर्व संध्या के रूप में मनाया जाता है। इस दिन धुनुची नृत्य विशेष रूप से मां दुर्गा की महिमा और शक्ति का बखान करने के लिए किया जाता है। नर्तक इस दिन धुनुची में जली धूप की सुगंध और धुएं के माध्यम से देवी दुर्गा को प्रसन्न करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं।

महानवमी के दिन यह नृत्य विशेष धूमधाम से किया जाता है। इस दिन बंगाल के पंडालों में विशेष आयोजन होते हैं, जहां पुरुष और महिलाएं दोनों पारंपरिक परिधानों में इस नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। पुरुष धोती-कुर्ता और महिलाएं बंगाली साड़ी पहनकर, हाथों में जलती हुई धुनुची को लेकर एकत्रित होकर देवी के सामने नृत्य करती हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

धुनुची नृत्य का मुख्य उद्देश्य देवी दुर्गा की आराधना और उनकी शक्ति को समर्पित करना है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस नृत्य का संबंध शक्ति और आत्म-समर्पण से है। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करने से पहले अपनी शक्तियों को और बढ़ाने के लिए इसी नृत्य का प्रदर्शन किया था, जिससे उनकी ऊर्जा और आक्रोश और भी अधिक प्रबल हो गए थे। तभी से यह नृत्य दुर्गा पूजा का अभिन्न हिस्सा बन गया।

इसके अलावा, धुनुची में जलाई गई धूप और चावल देवी को प्रसन्न करने के प्रतीक माने जाते हैं। भक्तजन अपने नृत्य के माध्यम से देवी दुर्गा की स्तुति करते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। इस नृत्य के माध्यम से भक्तजन यह दर्शाते हैं कि जीवन में संतुलन और समर्पण के माध्यम से ही शक्ति और विजय प्राप्त की जा सकती है।

कैसे किया जाता है धुनुची नृत्य?

धुनुची नृत्य की शुरुआत एक विशेष धुनुची के साथ होती है। धुनुची एक मिट्टी का बर्तन होता है, जिसमें जलती हुई धूप, नारियल की जटाएं और अन्य सुगंधित सामग्रियां रखी जाती हैं। इस जलते हुए धुनुची को नर्तक अपने एक या दोनों हाथों में पकड़ते हैं और फिर विभिन्न मुद्राओं में नृत्य करते हैं।

कुछ कुशल नर्तक धुनुची को मुंह में पकड़कर भी नृत्य करते हैं, जो देखने में अत्यंत कठिन और अद्वितीय लगता है। यह नृत्य बहुत धैर्य और संतुलन की मांग करता है। नर्तक ताल और लय के साथ सामंजस्य बनाते हुए नृत्य करते हैं और दर्शक भी इस नृत्य के जादू में खो जाते हैं।

कौन-कौन कर सकता है भागीदारी?

इस नृत्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे कोई भी कर सकता है—चाहे वह महिला हो या पुरुष। यह नृत्य जटिल होते हुए भी उतना ही आसान है, जितना इसे देखकर लगता है। इसके लिए कोई विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती; लोग एक-दूसरे को देखकर और अभ्यास के साथ इसे सीख सकते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान पंडालों में आयोजित धुनुची नृत्य प्रतियोगिताएं भी इसी भावना को प्रकट करती हैं, जहां युवा, बुजुर्ग और बच्चे भी बड़े उत्साह से भाग लेते हैं।

Positive सार

धुनुची नृत्य दुर्गा पूजा का एक ऐसा अनिवार्य हिस्सा है, जो न केवल देवी की आराधना का प्रतीक है, बल्कि यह बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर का भी महत्वपूर्ण अंग है। यह नृत्य हमें यह सिखाता है कि जीवन में संतुलन, समर्पण और शक्ति का सामंजस्य कैसे स्थापित किया जाए। यह नृत्य देवी दुर्गा की भक्ति, शक्ति और विजय का प्रतीक है, जो हमें अपने भीतर छिपी अपार ऊर्जा को पहचानने और उसे सही दिशा में उपयोग करने की प्रेरणा देता है।

हर साल दुर्गा पूजा के दौरान यह नृत्य हमें याद दिलाता है कि देवी दुर्गा की शक्ति हम सभी के भीतर विद्यमान है। बस हमें उसे जागृत करने की आवश्यकता है। धुनुची नृत्य के माध्यम से शक्ति, संतुलन और भक्ति का यह पर्व हमें सदैव ऊर्जावान और प्रेरित करता है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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