छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री साय ने वीर बाल दिवस पर लिया महत्त्वपूर्ण फैसला. राज्य के स्कूली पाठ्यक्रम में गुरु गोविंद सिंह के वीर साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बलिदान की कहानी जोड़ी जाएगी.
स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने वीर बाल दिवस के अवसर पर रायपुर में आयोजित संगोष्ठी में यह घोषणा की। वीर साहिबजादों के बलिदान की कहानी छत्तीसगढ़ के स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की घोषणा की गयी है. मुख्यमंत्री गुरु गोविंद सिंह और वीर साहिबजादों का पुण्य स्मरण करते हुए कहा कि हमें उनकी शिक्षाओं को अपनाना चाहिए और नयी पीढ़ी को उनके आदर्शों से जोड़ना चाहिए. इसलिए ये स्कूल पाठ्यक्रम में सम्मिलित होने चाहिए.
साय ने कहा, “वीर साहिबजादों की वीरता की यह कहानी देश के युवाओं को साहस के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी. हमें ऐसे महान वीर सपूतों की प्रेरक कहानियां अपने बच्चों और समाज को बतानी चाहिए.”
कौन थे साहिबजादे?
सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के चार पुत्र थे जिन्हें साहिबजादा के नाम से जाना जाता है. ये हैं साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह.
क्यों मनाया जाता है वीर बाल दिवस?
वीर बाल दिवस हर साल26 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह के छोटे बेटे साहिबजादा ज़ोरावर सिंहऔर साहिबजादा फतेह सिंह की शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है. इन दोनों साहिबजादों ने अत्यधिक शौर्य और बलिदान का परिचय दिया, जब उन्होंनेमुगल सम्राट औरंगजेब के अत्याचारों का विरोध किया और अपनी जान की आहुति दे दी.
साहिबजादा ज़ोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह की शहादत
साहिबजादा ज़ोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह को औरंगजेब के सैनिकों द्वारा बंदी बना लिया गया था. जब उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव डाला गया, तो उन्होंने इसे ठुकरा दिया. उन्हें दीवारों में ज़िंदा चुनवा दिया गया। उनका बलिदान आज भी सिख समाज में श्रद्धा और प्रेरणा का स्रोत है.
26 दिसंबर 1705 को फतेह सिंह और उनके बड़े भाई साहिबजादा जोरावर सिंह सरहिंद में शहीद हो गये। फतेह सिंह शायद इतिहास में दर्ज सबसे कम उम्र के शहीद हैं जिन्होंने 6 साल की उम्र में अपनी जान दे दी। साहिबजादा फतेह सिंह और उनके बड़े भाई, साहिबजादा जोरावर सिंह सिख धर्म में सबसे पवित्र शहीदों में से हैं।
Positive सार
वीरता की इस कहानी को, सभी को खासकर बच्चों को जानने की बहुत जरुरत है. ये न केवल सिखों, बल्कि पूरे मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है। भारत का इतिहास ऐसी शौर्य गाथाओं से भरा पड़ा है लेकिन उसे आगे पीढ़ी तक पहुचने का काम कर्त्तव्य है. छत्तीसगढ़ सरकार के इस प्रयास से बच्चे साहस, धैर्य, और सत्य के लिए संघर्ष की भावना के प्रति जागरूक होंगे.