भारत की शास्त्रीय भाषाओं की सूची में 5 नए नाम शामिल!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने भारत की शास्त्रीय भाषाओं की सूची में पांच नए नाम जोड़ते हुए मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा प्रदान किया है। इस ऐतिहासिक निर्णय से भारत में शास्त्रीय भाषाओं की कुल संख्या अब 11 हो गई है। इससे पहले तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को यह दर्जा मिल चुका था।

शोध कार्यों को मिलेगा बढ़ावा

किसी भाषा को ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा मिलना उस भाषा के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्व की स्वीकृति का प्रतीक है। यह निर्णय न केवल भारतीय भाषाओं की समृद्ध विरासत को सम्मानित करता है, बल्कि भाषाई धरोहरों के संरक्षण, अध्ययन और शोध कार्यों को भी बढ़ावा देता है।

ऐतिहासिक महत्व

केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद अब मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा के रूप में विशेष पहचान प्राप्त हो गई है। इन भाषाओं का भारतीय संस्कृति, इतिहास और साहित्य में अत्यधिक महत्व है।

  • मराठी: मराठी भाषा का साहित्यिक इतिहास 1000 से भी अधिक वर्षों पुराना है। संत कवियों और मराठा योद्धाओं के योगदान ने इस भाषा को अमूल्य धरोहरों से समृद्ध किया है।
  • पाली: पाली भाषा बौद्ध धर्म के मूल साहित्य की भाषा है, जिसमें त्रिपिटक और अन्य धार्मिक ग्रंथ लिखे गए। इसका अध्ययन भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बौद्ध धर्म के विकास और इसके प्रचार-प्रसार के लिए अहम है।
  • प्राकृत: प्राकृत भाषा जैन धर्म के अनेक धार्मिक ग्रंथों की रचना की आधारभूत भाषा है। प्राचीन भारतीय साहित्य में प्राकृत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
  • असमिया: असमिया भाषा का सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास असम के विकास और इसके सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का दर्पण है।
  • बंगाली: बंगाली भाषा को भारत की सबसे समृद्ध और साहित्यिक भाषाओं में गिना जाता है। रवींद्रनाथ टैगोर, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जैसे महान साहित्यकारों ने इस भाषा को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।

सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण

शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के बाद इन भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए विशेष प्रयास किए जाते हैं। इससे संबंधित साहित्यिक धरोहरों को डिजिटलीकरण और संरक्षण किया जाता है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इन धरोहरों से जुड़ सकें। इस दर्जे के मिलने से इन भाषाओं की प्राचीन साहित्यिक धरोहर जैसे ग्रंथ, कविताएँ, नाटक और अन्य रचनाएँ संरक्षित होंगी और उनके अध्ययन व शोध को भी प्रोत्साहन मिलेगा। इससे समाज में इन भाषाओं के प्रति जागरूकता और सम्मान बढ़ेगा।

भारत की शास्त्रीय भाषाओं की सूची

साल 2004 में केंद्र सरकार ने ‘शास्त्रीय भाषा’ की श्रेणी बनाई थी और सबसे पहले तमिल को यह दर्जा प्रदान किया गया। इसके बाद 2005 में संस्कृत, 2008 में तेलुगु और कन्नड़, 2013 में मलयालम और 2014 में उड़िया को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिली थी। अब 2024 में मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को भी इस सूची में शामिल कर लिया गया है।

क्रम संख्याभाषावर्ष
1तमिल2004
2संस्कृत2005
3तेलुगु2008
4कन्नड़2008
5मलयालम2013
6उड़िया2014
7मराठी2024
8पाली2024
9प्राकृत2024
10असमिया2024
11बंगाली2024

शास्त्रीय भाषाओं को मिलने वाले लाभ

शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से निम्नलिखित लाभ होते हैं:

  1. संरक्षण और संवर्धन: प्राचीन साहित्य, ग्रंथों, और भाषाई धरोहरों का डिजिटलीकरण, संरक्षण और पुनर्प्रकाशन।
  2. शोध कार्यों में बढ़ावा: भाषा और साहित्य से संबंधित शोध कार्यों के लिए विशेष अनुदान और सहायता।
  3. शैक्षणिक विकास: विश्वविद्यालयों और संस्थानों में इन भाषाओं के अध्ययन और शोध को प्रोत्साहन।
  4. सांस्कृतिक महत्व: समाज में इन भाषाओं की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के प्रति सम्मान और जागरूकता बढ़ाना।

भाषाई विविधता का सम्मान

मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देकर केंद्र सरकार ने भारतीय भाषाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और सम्मान को स्पष्ट किया है। यह फैसला इन भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और अध्ययन में मील का पत्थर साबित होगा। शास्त्रीय भाषाओं की यह बढ़ती सूची भारत की समृद्ध भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को सहेजने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी रह सकेंगी।

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Rishita Diwan

Content Writer

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