इस आधुनिक दुनिया की दौड़ में जब हम दूसरे ग्रह पर जीवन तलाश रहे हैं तब हमें अपने ही घर (ग्रह) पृथ्वी पर विलुप्त होते जीवन की सुध क्यों नहीं है?
Only One Earth, घर एक ही होता है, बस घर के सदस्य भिन्न-भिन्न होते हैं। पृथ्वी हमारे घर के address में तो आती ही है, लेकिन ये पता इस पृथ्वी पर रहने वाले हर सूक्ष्म जीव से लेकर पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, नदी और जंगल का भी है। इस पृथ्वी पर मौजूद हर कोई इस तरह के ताने-बाने से बुना है कि हर किसी को सबकी जरूरत है।
यदि धरती की सारी मधुमक्खियां खत्म हो जाती हैं तो मात्र 4 वर्षों में धरती से मानव जीवन खत्म हो जाएगा। लंबे समय से एल्बर्ड आइंस्टाइन का यह उद्धरण संपूर्ण विश्व में प्रचलित है।
क्या वाकई मानव जीवन की गुणवत्ता मधुमक्खी परागण पर इस हद तक निर्भर है?
‘Insect pollination of cultivative crop plants’ के लेखक S.E.M.C. ग्रेगर ने 1976 में बयान दिया था कि हमारे भोजन का एक तिहाई हिस्सा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कीटों के द्वारा परागण किए पौधों पर निर्भर करता है। दूध व दूध के उत्पादन जो हमारे जीवन और स्वास्थ्य का अभिन्न अंग हैं, वो भी मधुमक्खी के कारण हम तक पहुंचता है। क्योंकि जो चारा, घास दुधारी पशु खाते हैं, उनकी पैदावर तब तक नहीं हो सकती जब तक मधुमक्खी परागण न करें।
जैसे एक परिवार के हर सदस्य की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे एक-दूसरे का ख्याल रखें, हमें भी इस धरती का ख्याल रखना चाहिए। लेकिन हम अपने फायदे, अनभिज्ञता और दिखावे के कारण जंगल काट-काटकर जानवरों को उनके घर से बेघर कर रहे हैं। प्रकृति ने हर जीव, पक्षी को जिम्मेदारी दी है ताकि वे अपने योगदान से इस धरती को संतुलित रखें। लेकिन मानव की उपभोक्तावादी या विलासितापूर्ण जीवनशैली से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जिस तेजी से हो रहा है, उस पर रोक आवश्यक है।
जीवनशैली का बदलाव एक क्रांति ला सकता है। हर नागरिक की जागरुकता इस काम को और तेजी दे सकती है। Minimalism यानी कि आवश्यक और अनआवश्यक वस्तुओं में भेद कर कम से कम में जीवनयापन करना। इसकी शुरूआत का सबसे सटीक उदाहरण ग्लैमर के रेट कार्पेट “कांस फिल्म फेस्टिवल “के दो बार के ग्रैमी विजेता कलाकार ने दिया। उन्होंने वही कपड़े पहने जो ग्रैमी अवार्ड में पहने थे, कांस फिल्म फेस्टिवल जो फैशन और परिधान के लिए प्रसिद्ध है। वहां जब उनसे कपड़े दोहराने के विषय में पूछा गया तो उन्होंने कहा “दो बार एक कपड़े पहनने में कोई हर्ज़ नहीं है। मेरे इस कृत्य से पृथ्वी व प्रकृति को कम क्षति पहुंचेगी।” क्योंकि ये सर्वविदित है कि फैशन, डिजाइनर परिधान और कॉस्मेटिक में किस तरह प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होता है।
टेबल साफ करना हो, हाथ पोंछना हो तो हाथ टिशु पेपर की तरफ ही जाता है। लेकिन हम शायद ये नहीं जानते कि विश्व स्तर पर टिशु पेपर बनाने के लिए हर रोज तकरीबन 17 पेड़ काटे जाते हैं। और इससे 75 हजार पानी दूषित होता है। यानि एक पेड़ जो धरती में 20 – 50 साल से अपनी जड़ें जमाए हुए हैं, उसे काटकर फैक्ट्री में ऐसे कागज़ में बदल दिया जाता है, जिसका इस्तेमाल महज 5 सेकंड के लिए होता है।
जलवायु बदलाव और अन्य पर्यावरण से जुड़ी समस्याएं अब अपना विकराल रूप दिखाने लग गई है। अब भी अगर हम सभी ने अपनी-अपनी नैतिक जिम्मेदारियां न संभाली तो हमें भी बेघर होते समय नहीं लगेगा।
हमें अपने घर (पृथ्वी) और अपनों (धरती के हर जीव ,पेड़, नदी) का संरक्षण करना है। क्योकिं We have Only One Earth.
#OnlyOneEarth