नवरात्रि : स्त्रोत की ओर एक यात्रा

क्ति और दुर्गा ये दो नाम देवी मां के पर्यायवाची माने जाते हैं। लेकिन जब हम ध्यान से इसके सही अर्थों को पहचाने, तो ये बहुत ही भिन्न हैं। शक्ति जो कि अंदर से प्राप्त होने वाली आंतरिक ऊर्जा है, जो कि प्रेरणा, धैर्य, साहस, शांति, समर्पण के रूप में प्रतिपादित होती है। वहीं दुर्गा बना है ‘दुर्ग’ शब्द से, जो दर्शाता है बाहरी स्वरूप को। जो प्रतिपादित होती है साधन, कौशल और विनिमय के रूप में। मनुष्य के जीवन में इन दोनों स्वरूपों का समान महत्व है।
 
वैदिक विज्ञान के अनुसार पदार्थ अपने मूल रूप में वापस आकर फिर से अपनी रचना करता है। प्रकृति के द्वारा हर वस्तु का नवीनीकरण हो रहा है। परिवर्तन की यह एक सतत् प्रक्रिया है। नवरात्रि का त्यौहार और मां की उपासना, अपने मन को अपने स्त्रोत की ओर ले जाने के लिए है।
 
नवरात्रि के यह नौ दिन, तीन मौलिक गुणों से बने इस ब्रह्मांड में आनंदित रहने का भी एक अवसर है। यद्यपि हमारा जीवन इन तीन गुणों के द्वारा ही संचालित होता है। नवरात्रि के पहले तीन दिन तमोगुण है, दूसरे तीन दिन रजोगुण और आखिरी तीन दिन सत्व के लिए है। हमारी चेतना इन तमोगुण और रजोगुण के बीच बहती हुई सत्वगुण के आखिरी दिनों में खिल उठती है। जब भी जीवन में सत्व बढ़ता है, तब हमें विजयी मिलती है।
 
यह तीन मौलिक गुण हमारे भव्य ब्रह्मांड की स्त्री शक्ति माने गए हैं। नवरात्रि के दौरान देवी मां की पूजा करके हम त्रिगुणों में सामंजस्य लाते हैं और अपने अंदर सत्व को बढ़ाते हैं। सही मायनों में देखा जाए तो नवरात्रि अपने आप के पुनर्जन्म का उत्सव है।
 
जैसे एक शिशु नौ माह अपनी मां के गर्भ में पलकर संपूर्णता प्राप्त करता है। वैसे ही इन 9 दिनों का महत्व हम अपने आप में परा प्रकृति में रहकर, अपनी आंतरिक और बाह्य शक्तियों को तराशते हैं और जब हम बाहर निकलते हैं, तो न सिर्फ सृजनात्मकता और संपूर्णता से भरे होते हैं। अपितु अपने स्त्रोत के और करीब होते हैं। इस नवरात्रि को अपनी शक्ति और दुर्गा का सामंजस्य बनाकर मनाएं।
 
शारदीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।
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Dr. Kirti Sisodhia

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