हिंदी क्या है?

हिंदी क्या है?
 
भाषा है या विषय है?
 
हिंदी क्यों पढ़ाई जाती है?
 
इन सवालों के जवाब सभी के अपने-अपने होंगे। लेकिन एक ही तय जवाब तैयार हो, यह शायद संभव नहीं है।
 
हिंदी एक सरल, सहज और दिल की भाषा है। जो कि हमारी मातृभाषा भी है। हिंदी हमारी संस्कृति और हमारी पहचान है। हिंदी भाषा और विषय से कहीं अलग और उन्नत है। हिंदी क्यों पढ़ायी जाती है? इसका उद्देश्य क्या है?
 
इसका उद्देश्य बहुत गहरा है। हिंदी हमारी संस्कृति और मानव मूल्यों का प्रतिबिंब है। जो दिल की बात दिल की ही ज़ुबान में व्यक्त करने की क्षमता रखती है। हिंदी में एक अजीब सा खिंचाव है, जो सुनने वाले को अपनी ओर आकर्षित करती है। आकर्षण अमूमन सरलता और सहजता में होता है। हिंदी भी अपनी सहजता के लिए जानी जाती है।
 
दुनिया में कई देश हैं, जहां हिंदी बोली जाती है। जैसे- मॉरिशस, फिजी इत्यादि। फिजी की तो राजभाषा ही हिंदी है। हिंदी के प्रति लगाव और जिज्ञासा का अनुमान केंद्रीय हिंदी संस्थान में हिंदी पढ़ने आए 70 देशों के विदेशी छात्रों से लगाया जा सकता है। कुछ तो आकर्षण है हमारी हिंदी में।
 
इस आधुनिक युग में जहां अन्य भाषाओं की जरूरत समय की मांग है। वहीं आधुनिक से आधुनिक कार्यक्रम में जब हमारे राजनेता या कवि हिंदी के शब्दकोश को बिखेरते हैं तो मन रोमांचित हो जाता है।
 
जब अटल बिहारी वाजपेयी, सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, कुमार विश्वास जैसे दिग्गज हिंदी को मोतियों की माला की तरह पिरोकर अपनी बात कहते हैं, तो एक ऐसा अनुभव होता है जिसे गर्व से महसूस किया जा सकता है।
 
हिंदी की महत्ता को अब गूगल ने भी पहचान ली है। भारत एक विश्व शक्ति के रूप में उभर रहा है। व्यापार के नए-नए आयाम खुल रहे हैं।
 
बिजनेस हिंदी सीखने का चलन भी विदेशों में बढ़ा है। जब हिंदी की परिधि विदेशों तक फैल रही है तो बदलाव आंतरिक रूप से भी फैल रहा है। अब युवा भी प्रेमचंद, अमृता प्रीतम, रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा जैसे नामों से परिचित होने लगे हैं।
 
हिंदी आज अपनी पहचान सबको दिखा रही है। यह बदलाव की बयार है। हिंदी अब कैरियर बनाने के विकल्प वाले विषयों की फेहरिस्त में शामिल हो गई है।
 
हिंदी क्या है? इस सवाल के जवाब में मुझे तो यही लगता है कि हिंदी हमारा अस्तित्व है, हमारे सोचने, अनुभव करने और जीने की पहचान है। संकल्प करें कि अपनी मातृभाषा से गर्वित महसूस कर उसमें मौजूद रत्नों को तराश कर खुद को भी तराशें।
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Dr. Kirti Sisodia

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