गुरु

ना जाने कितने अनगिनत रंगो से मिलकर ज़िंदगी का चित्र बनता है। समय-समय पर कोरे कैन्वास पर अनुभव अपने रंगो की छाप बनाते हुये इस चित्र को पूरा करते हैं। हर रंग अपनी एक नायाब कहानी बयां करता है। ज़िंदगी का हर पल, हर साथ, हर बिछोव कुछ न कुछ सिखाता है। शर्त यह है कि हम कितना समझ कर उसे अपने अंदर समा पाते है। 

इंसान के जीवन की शुरुआत में माता–पिता उसके सबसे पहले गुरु होते हैं, फिर शिक्षक और जीवन का हर अनुभव उसको शिक्षित करता रहता है। भौतिक जीवन हो या आध्यात्मिक जीवनगुरु की महत्ता का कोई पर्यायवाची नहीं है। अपने पूरे जीवन में हम बाहर की दुनिया को जीतने की दौड़ में लगे रहते हैं। हिस्सा, हिस्सा जोड़कर तरक्की की एक–एक सीढ़ी चढ़ते हैं। जब हम अपने जीवन के हिस्सों की बात करते हैं, तो हर हिस्से को शिक्षित किसी न किसी गुरु के द्वारा किया पाते हैं। 

गुरु हमें अपने आप से मिलवाने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। माता पिता के लिए उनका बच्चा सबसे योग्य होता है, “अपने आप पर विश्वास” ये पहला सबक माता–पिता देते हैं। स्कूल, कॉलेज में शिक्षक/शिक्षिका हमारे अंदर मौजूद ज्ञान को तराश कर बाहर प्रदर्शित करने का मार्ग सिखाते हैं। जीवन में मिलने वाली हर जीत प्रेरणा देती हैतो हर हार थोड़ा ठहर कर, दुगुनी ताक़त से दौड़ने की सलाह देती है। 

हर धोखा और हर अपनापन जीवन की किताब को अनुभवों से भरते हैं। 

गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है, कि पूरा “ब्रम्हाण्ड हमारे अंदर ही निहित है” इस वाक्य को समझने और उससे रूबरू होने, गुरु ही हमारी मद्द करते हैं। अपने ही अंदर निहित सम्भावनाऐं, अपार शक्ति और सारे नैसर्गिक गुणों से साक्षात्कार करवाने और जीवन के हर क्षण में मार्गदर्शन करने वाले सभी गुरुओं को नमन हैं। 

गुरु पूर्णिमा की अनेकों शुभकामनायें। 

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Dr. Kirti Sisodia

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