प्रत्येक भारतीय को पिछले सात दशकों में हुई सामाजिक-आर्थिक प्रगति पर गर्व होना चाहिए।
संशयवादियों को विश्वास नहीं था, कि भारत आगे बढ़ पाएगा। लेकिन भारत ने इन चुनौतियों को ताक़त में बदला। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी नीतियाँ और उनके क्रियान्वयन का इस बदलाव में अभिन्न हिस्सा है। और आज हम दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में अपना 6वां स्थान सुरक्षित कर चुके हैं। हमने सर्विस इकोनॉमी में ताकत विकसित की है। आज हम 5% की विकास दर से आगे बढ़ रहे हैं। और ये रफ़्तार अगर यूं ही बरकरार रही तो 2032 तक हम यूके, जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर कर दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। हालांकि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये हम सभी को कुछ सामाजिक-आर्थिक और औद्योगिक पहलुओं को देखना जरूरी है।
शिक्षा और इनोवेशन हमारे ‘आत्मनिर्भर भारत’ के भविष्य की बुनियाद है। “भविष्य के लिये टैलेंट पूल” बनाने के लिये शिक्षा पर जोर देना महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) प्रारंभिक से उच्च शिक्षा की ओर सही दिशा में एक कदम है।
एनइपी (NEP) का लक्ष्य 2050 तक शिक्षा प्रणाली को बदलना और इसे न केवल वर्तमान विकास उद्देश्यों बल्कि भविष्य के लक्ष्यों के अनुरूप बनाना है।
इसमें व्यावसायिक व शैक्षणिक विषयों के बीच अलगाव नहीं है। व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा में लाना जरूरी है, क्योंकि व्यवसायिक कौशल से युवा रोज़गार और उद्यमशील के अवसर के लिये तैयार होंगे।
शिक्षा के माध्यम से बनी मजबूत नींव हर क्षेत्र में अपना योगदान बखूबी दे सकती है। हमारे स्टार्ट-अप ईकोसिस्टम को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है। आज हमारे देश में हर क्षेत्र में चाहे वो कृषि, उद्योग या फिर स्वास्थ्य हो, यहां अनेक संभावनाएं हैं।
लेकिन एक पहलू यह भी है कि, आत्मनिर्भरता एक मंज़िल है। और यहां तक पहुंचने के लिये अनगिनत कड़ियों को बखूबी जोड़ना होगा। लेकिन इन सब का आधार हमें एक जागरूक और स्वावलंबी इंसान बनना है।
हिंदी के प्रसिद्ध व्यंगकार हरिशंकर परसाई ने कहा था, “इस देश की आधी ताकत लड़कियों की शादी में जा रही है, पाव ताकत छिपाने में जा रही है – शराब पीकर छिपाने में, प्रेम करके छिपाने में, घूंस लेकर छिपाने में। बची पाव ताकत में देश का निर्माण हो रहा हैं। आख़िर एक चौथाई ताकत में कितना होगा?
ये टिप्पणी आज भी बिल्कुल सही लगती है। इतिहास गवाह है, एक पीढ़ी के अन्दर किसी भी देश का कायाकल्प हो सकता है। जापान को देखें तो द्वितीय विश्वयुद्ध में तबाह होने के बाद 20 सालों में वे अपने पैरों पर खड़ा है। क्योंकि देश के पुनर्निमाण में उन्होंने अपना 100% योगदान दिया। और ये योगदान सिर्फ नेताओं या नीतियाँ बनाने वाले अफसर ही नहीं हर भारतीय नागरिक को अपने-अपने स्तर का 100% योगदान देना होगा।
देश प्रेम को सिर्फ़ 15 अगस्त या 26 जनवरी तक या फिर अपने सोशल मीडिया प्लैटफार्म तक सीमित न होकर दिलों में उतरने की जरूरत है। हमें अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी से निभाने की जरुरत हैं।
चाहे वह शिक्षक हो, कोई उच्च पद पर आसीन प्रशासनिक अधिकारी हो, आईजी हो, वकील हो, उद्योगपति हो, हर भारतीय का एकमात्र लक्ष्य ,आत्मनिर्भर भारत होना चाहिए। ताकि ये सपना हकीकत का रूप ले सके।