जिन्दगी वाकई खूबसूरत है। लेकिन यह तब और भी खूबसूरत और सुकून भरी लगती है, जब आपके अपने आपके आसपास हंसते-मुस्कुराते हो।
इस खूबसूरती और सुकून का एहसास अब और ज्यादा महसूस हो रहा है, जब मेरे mentor, मेरे बेस्ट-friend, मेरे shock absorber, मेरे मन की हर बात बिना बोले समझ जाने वाले – मेरे पापा, 4 साल से भौतिक रूप से मेरे साथ नहीं है।
आज जब जीवन की भाग-दौड़ में खुद से सामना होता है, जब हर ओर शोर होता है, लेकिन भीतर सन्नाटा!
तब, एक स्मृति मुझे हमेशा थामती है, और वो है मेरे पापा की स्मृति!
वो ज्यादा नहीं बोलते थे, लेकिन उनकी खामोशी मेरे लिए सबसे गहरा संवाद था । क्योंकि जहां शब्दों की बजाए भावनाओं का संवाद हो, उसकी गहराई का अंदाजा वह दो लोग ही लगा सकते हैं, जो इस संवाद में शामिल हो।
जीवन के प्रति उनका नजरिया बिल्कुल अलग था। उन्होंने कभी भी मुझसे ऊंचाइयों या उपलब्धियां की बड़ी बातें नहीं की, ना ही किसी तरह का दबाव डाला कि सबसे आगे रहो. बस एक सहज-सा सवाल रहता था, जो हर रोज की तरह मन में गूंजता रहता था- “आज कुछ नया सीखा?”, “क्या खुद पर विश्वास करने की कला सीखी?”
शायद यही उनका प्रेम था और यही शिक्षा की उनकी परिभाषा थी!
उनमें दिखावा नहीं था। कोई उपदेश नहीं, कोई जोर नहीं। जो भी दिया वह जैसे जिंदगी के सहज प्रभाव में आता रहा। बिना शोर, बिना आग्रह लेकिन पूरी सच्चाई और संवेदना के साथ।
मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार में पली बढ़ी, जहां हर चीज जरूरत के हिसाब से तय होती थी। सुबह अखबार के पन्नों के बीच मम्मी की आवाज, विविध भारती के संगीत की लयों में सुबह की शुरुआत, स्कूल के लिए भागम-भाग और शाम को पढ़ाई की टेबल पर फैले सपनों के बीच पापा का सधा हुआ मौन! वह मौन – जिसमें हर जवाब था।
मेरे पापा ने कभी नहीं कहा कि “अच्छे नंबर लाओ”, लेकिन उन्होंने जरूर दिखाया कि “हां! अनुभव से कुछ सीखना चाहिए” । उन्होंने कभी नहीं मांगा कि ये बनो, वो बनो लेकिन, उन्होंने हर दिन ये जता दिया कि इंसान कैसे बना जाता है। कभी कोई गलती करने पर या बात नहीं मानने पर भी, उन्होंने मारना तो दूर डांटा तक नहीं। कोई नाराजगी नहीं बस एक नजर जो कहती थी “हर इच्छा का पूरा होना जरूरी नहीं लेकिन उस पर काबू पाना बहुत जरूरी है“।
जहां उनके शब्द रुक जाते थे, वहां उनका व्यवहार बोलता था। मुझे याद ही नहीं कि उन्होंने कभी किसी को “तुम” कहकर संबोधित किया हो। उनके व्यक्तित्व में आत्मविश्वास था, अनुशासन था और एक मौन सहमति थी कि हर मुश्किल को गरिमा से सहा जाए।
कभी-कभी लगता है, उन्होंने मुझे जानबूझकर अधूरे जवाबों में छोड़ा। ताकि मैं खुद सवालों का मतलब तलाश कर सकूं। उन्होंने कभी डर से भागना नहीं सिखाया, बल्कि उसे पहचानना, मजबूती से डटे रहना और फिर भी आगे बढ़ाना सिखाया।
उन्होंने हमेशा सिखाया “हर रंग सुंदर है, लेकिन सबसे जरूरी है उजाले को चुनना”। उनके कई साधारण से वाक्य जीवन के सबसे गहरे दर्शन बन गए।
आज जब जिंदगी की भीड़ में कुछ पल ठहर कर सांस लेती हूं, तो लगता है मेरे भीतर जो कुछ बचा है, वह सबसे सच्चा है, वह किसी चीज का नहीं बल्कि भावों का उगाया हुआ कोमल पौधा है।
वह पल हमेशा के लिए मेरी आत्मा पर अंकित हो गया है, जब 17 मई 2021 को अस्पताल में ऑक्सीजन मास्क के साथ इतनी तकलीफ में भी, कितनी शालीनता से वे लेटे हुए थे। मेरे हौले से छूने और पापा शब्द का संबोधन सुनकर उनका आँखों को खोलना और कहना, “बेटा! घर ले चलो, बहुत तकलीफ हो रही है“।
अपने पूरे जीवन में उनके मुंह से पहली बार तकलीफ या शिकायत सुनी। आंखें तो क्या मेरी आत्मा तक सिहर उठी। लेकिन बेबस मेरे मुंह से सिर्फ इतना ही निकला कि, “बस कुछ दिन की बात है पापा”। मुझे नहीं पता था कि मैं उन्हें सांत्वना नहीं दे रही, बल्कि उनसे आखिरी बार बात कर रही हूँ।
जब मैंने उनके हाथों को अपने हाथों में लिया, तो मानो उनकी आंखें कह रही थी- “खुश रहना, हिम्मत रखना”। आज भी जब आंखों के उस मौन संवाद को याद करती हूं, तो लगता है जैसे उस मौन में एक पूरी दुनिया थी।
अब वह भौतिक रूप से मेरे साथ नहीं है, लेकिन कहते हैं कि, जब रिश्ते आत्माओं से जुड़े हो, तो वह अटूट होते हैं। एक पिता और बेटी का रिश्ता हर दायरे हर परिभाषा से परे है, क्योंकि यह एक ऐसा रिश्ता है जो हर बेटी और पिता अपने-अपने तरीके से इसे आकार देते हैं। यह निराकार होकर भी हमेशा साथ ही होता है। आज पापा तो मेरे पास नहीं है। लेकिन पापा ने जो बीज बोया था – मुझ में अपनी परवरिश और प्यार से, वह अब मेरी सोच में ,मेरी चुप्पियों में और सबसे ज्यादा मेरी सांसों में जिंदा है!
Happy Father’s Day
आप जहाँ भी हैं हमेशा खुश रहें!