RAW: भारत की सुरक्षा एजेंसियों में प्रमुख RAW एक खुफिया सुरक्षा एंजेसी है। रॉ एजेंट का काम बेहद संवेदशील और खतरों से भरा होता है। इनका मुख्य काम दुश्मन देशों से खुफिया जानकारियां हासिल करना है। आइए जानते हैं देश में कब हुआ RAW का गठन और कैसे चुने जाते हैं रॉ एजेंट।
कैसे बनाई गई RAW ?
1962 में हुए भारत-चीन वॉर और 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद उस समय के सेनाध्यक्ष जनरल जएन चौधरी ने एक रिपोर्ट दी जिसमें उन्होंने कहा कि भारत को निर्णायक जीत ना मिलने का कारण कुछ खुफिया जानकारियों की कमी थी। इसके बाद ही भारत ने RAW यानी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग की स्थापना की का फैसला किया गया।
कब हुई RAW की स्थापना?
RAW की स्थापना 21 सितंबर 1968 को की गई। रामेश्वर नाथ काव ने रॉ के पहले निदेशक के रूप में पद संभाला। इन्होंने संकरन नायर के साथ मिलकर काम किया । इन्होंने इंटेलीजेंस ब्यूरो से जुड़े 250 लोगों को रॉ में शामिल किया और उन्हें ट्रेनिंग दी। बाद में कॉलेज से सीधे रॉ एजेंट्स चुने जाने लगे। लेकिन सेंसिटिव काम होने के कारण बाद में रॉ एजेंट बनने के लिए कड़ी ट्रेनिंग का प्रवाधान कर दिया गया।
कैसे होता है RAW में चयन?
RAW में चयन की कोई सीधी परीक्षा नहीं होती है। RAW एजेंट्स को UPSC पास कर चुके उम्मीदवालों में से ही चुना जाता है। यो वो उम्मीदवार होते हैं जिन्होंने IPS या IFS चुना होता है। साथ ही LBSNAA से इनकी ट्रेनिंग पूरी होनी जरूरी है। आखिर में RAW इंटरव्यू और साइकोलॉजिल टेस्टिंग होती है। हर चरण में पास होने के बाद ही RWA में एंट्री मिलती है।
RAW एजेंट्स की ट्रेनिंग
RAW एजेंट्स को मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से तैयार किया जाता है। उन्हें खुफिया जानकारी हासिल करने की ट्रेनिंग दी जाती है। एजेंट्स को कोई भी एक विदेशी भाषा भी सीखनी होती है। उन्हें यह भी सिखाया जाता है कि विषम परिस्थियों को कैसे संभाला जाए। पकड़े जाने पर कैसे बचा जाए। पकड़े जाने पर सवालो के जवाब कैसे दिए जाएं।
सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग
मानसिक रूप से मजबूत होने के साथ रॉ एजेंट को शारीरिक रूप से भी ताकतवर होना जरूरी है। इसके लिए उन्हें ‘क्रावमगा’ में ट्रेन किया जाता है। क्रावमगा में उन्हें आमने-सामने की लड़ाई में खुद की रक्षा करना सिखाया जाता है। क्रावमगा एक तरह का मार्शल आर्ट है। इन सबके अलावा रॉ एजेंट्स को कोड लैंग्वेज भी सीखनी होती है।