“The most powerful element in advertising is the truth” किसी भी कंपनी या व्यक्ति को अपने प्रोडक्ट के प्रचार के समय प्रसिद्ध अमेरिकन आर्ट डायरेक्टर विलियम बर्नबैक की ये बात याद कर लेनी चाहिए। क्योंकि आज के दौर में विज्ञापन सिर्फ सामान बेचने का एक जरिया नहीं है बल्कि ये कई जिंदगियों को प्रभावित करती है। आज हम खाने-पीने, रोजमर्रा की चीजें यहां तक की दवाईयों के ब्रैंड्स भी advertisement देखकर ही खरीदते हैं। जानते हैं भारत में misleading advertisement फैलाने वाली कंपनियों को लेकर क्या कहती है सुप्रीम कोर्ट?
IMA ने की थी याचिका दायर
17 मार्च 2022 को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी कि IMA ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। जिसमें भारत की एक बड़ी कंपनी को कोविड वैक्सिनेशन और इसके इलाज के संदर्भ में भ्रामक यानी कि misleading advertisement देने की बात कही थी। जो जनता के हित में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस एहसानुद्दीन अमानतुल्लाह की बेंच इस मामले पर सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट तौर पर कहा है कि “कोर्ट का स्प्ष्ट view है जो भी कंपनी कंज्यूमर के हेल्थ के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ करेगी उसके लिए कड़ा रुख अपनाया जाएगा।“ यानी कि सुप्रीम कोर्ट देश के सभी उन संस्थानों को ये मैसेज देना चाहती है कि हेल्थ से जुड़ी किसी भी प्रोडक्ट के भ्रामक विज्ञापन को देश नजरअंदाज नहीं करेगा।
कौन से नियम के तहत होती है कार्यवाई?
misleading advertisement को रोकने के लिए ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडिज एक्ट 1954 के अंतर्गत कार्यवाई की जाती है। इसकी धारा 3 और 4 बेहद महत्वपूर्ण है।
धार-3 ये कहती है कि जादुई गुणों का दावा करने वाली दवा, उपचार या ऐसे विज्ञापनों को रोका जा सकता है। अगर कोई संस्था ये नियम नहीं मानता है तो ये संज्ञेय अपराध यानी कि सिरियस क्राइम है। वहीं धारा-4 में कहा गया है कि ऐसे मामलों में पुलिस स्टेशन का प्रभारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना भी जांच कर सकता है और बिना वारंट के गिरफ्तारी का भी अधिकार पुलिस को है।
कंज्यूमर को रखना होगा ख्याल
कंज्यूमर को इस बात से परहेज करना चाहिए कि अपनी लाइफस्टाइल को सुधारे। न कि अपने मोटापे या दुबलेपन की परेशानी को खत्म करने के लिए फाल्स विज्ञापनों पर भरोसा करे। बिना खान-पान सही किए बालों के झड़ने और डिप्रेशन जैसी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए विभिन्न प्लेटफॉर्म पर दिखाए जा रहे एड पर भरोसा लें। आजकल सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर के जरिए भी कई उत्पादों के भ्रामक विज्ञापन सोशल मीडिया पर दिखाए जाते हैं। यही नहीं कई कंपनियां दवाओं को पूरी तरह से साइड इफेक्ट रहित भी बताती हैं। जो कि एक गंभीर स्थिति है।
Positive सार
यहां हम ये कहना चाहते हैं कि अवेयर रहें। misleading advertisement के बारे में जानें और समझें। न तो भ्रामक विज्ञापनों पर विश्वास करें और न ही उनका हिस्सा बनें।after all ये आपके हमारे हेल्थ के साथ-साथ हमारे बजट और टाइम से भी जुड़ा है।