PLI योजना से हो रहे हैं बड़े बदलाव, बदल रहा है विनिर्माण क्षेत्र का स्वरूप!



तीन साल पहले जब पीएलआई (Production Linked Incentive Scheme) योजना अस्तित्व में आई थी, तब एक सवाल हर किसी के दिमाग में था कि- क्या पीएलआई योजना पर फोकस कर भारत की अर्थव्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन लाया जा सकता है, जैसा कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के रूप में विशेष आर्थिक क्षेत्र ने चीन के निर्यात में 60 फीसदी योगदान देकर किया है?

लेकिन अब जब परिणाम सभी के सामने हैं कि इस योजना के जरिए व्यापक तरीके से विनिर्माण क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव हुए हैं, जिसमें रोजगार देने की सबसे अधिक संभावना दिखाई दी है। पीएलआई योजना की मदद से इलेक्ट्रॉनिक्स का क्षेत्र अप्रैल 2022 से फरवरी 2023 तक 11 महीने की अवधि के लिए भारत का सबसे तेजी से बढ़ने वाला निर्यात बनकर स्थापित हुआ है और स्मार्टफोन इस उल्लेखनीय परिणाम का एक बड़ा हिस्सा है। जिसकी उदाहरण है कि भारत में 
आईफोन मैनुफैक्चरिंग प्लांट और स्टोर्स का खुलना।

इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में इन उत्साहजनक परिणामों से प्रेरित होकर भारत ने यह लक्ष्य रखा है कि 2025-26 तक इलेक्ट्रॉनिक्स के 120 अरब डॉलर के निर्यात को 2026 तक 300 अरब डॉलर तक बढ़ाया जाएगा। जबकि पहले भारत की पहचान बड़ी संख्या में स्मार्टफोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का ‘आयात’ करने के लिए थी। जिससे हमारा व्यापार असंतुलन और चालू खाता घाटा में लगातार बढ़ रहा था। मोबाइल फोन का उत्पादन 2014-15 में लगभग 6 करोड़ से बढ़कर 2021-22 में लगभग 31 करोड़ तक पहुंच गया है। 2024 तक कुल इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में इसका योगदान लगभग 50 फीसदी होने की उम्मीद है। 2022 में इस क्षेत्र के लिए पीएलआई योजना के पहले ही वर्ष में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में 40.5 फीसदी की वृद्धि हुई और यह तेज गति देखना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उत्साहजनक है।

घरेलू और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा

इस क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि पीएलआई योजना से अगले 4-5 वर्षों में 30 लाख करोड़ रुपये के घरेलू और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। जिससे आर्थिक विकास नई ऊंचाईयां हासिल करेगी। इससे आने वाले कुछ वर्षों में लगभग 60 लाख रोजगार के अवसर यानि विशेष रूप से सूक्ष्म रोजगार का सृजन होगा, क्योंकि पीएलआई योजना के तहत कवर किए गए 14 क्षेत्रों में से अधिकांश कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण जैसे श्रम प्रधान क्षेत्र में आते हैं, जो देश को नौकरी की कमी से उबरने में सहायक होते हैं।

आर्थिक रिकवरी में सहायक साबित हुई पीएलआई योजना

जहां एक तरफ भारतीय अर्थव्यवस्था में यह योजना मददगार हुई, वहीं आपूर्ति श्रृंखला संकट के बीच यह यह घरेलू विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने में सहायक साबित हुई। इससे देश को बड़े पैमाने पर आपूर्ति श्रृंखला के बीच आने वाली परेशानियों के प्रति अधिक लचीला बनाया गया है। जैसे कि COVID महामारी जैसी घटनाओं और रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद उत्पन्न हुई स्थितियां।

इस योजना ने कोविड के बाद आर्थिक और औद्योगिक रिकवरी में काफी मदद की। लोगों को रोजगार और घरेलू व्यापार के लिए मदद मिली। भारतीय इकोनॉमी पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव देखने को मिले। इससे कपड़ा, मोटर वाहन, व्हाइट गुड्स और दूसरे क्षेत्रों में अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं। उदाहरण के लिए इस योजना से प्रेरित होकर भारत अब 2026 तक अपने ऑटो कॉम्पोनेंट्स के निर्यात को दोगुना करने का प्लान बना रहा है, जिसके तहत 30 बिलियन डॉलर का लक्ष्य रखा गया है जो फिलहाल केवल 15 बिलियन डॉलर है जबकि वर्तमान वैश्विक ऑटो कॉम्पोनेंट्स व्यापार 1.3 ट्रिलियन डॉलर के करीब है।

ये जरूर है कि पीएलआई योजनाओं ने विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने का कार्य किया है। इसके अलावा आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिए भी यह काफी मददगार साबित हो रहा है। इसके अंतर्गत आने वाले उद्योग, प्रक्रिया संबंधी रुकावटों को कम करके वैश्विक बाजारों में उत्पादन प्रक्रियाओं और वस्तुओं को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अपनी लॉजिस्टिक कॉस्ट को भी कम करने का कार्य कर रहे हैं। भू-आर्थिक दृष्टिकोण से भी इसका उद्देश्य भारत को चीन के लिए एक वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करता है।

इस प्रकार कहा जाए तो पीएलआई योजनाओं के सफल परिणाम देने के साथ ही भारत का वैश्विक पटल पर एक विनिर्माण शक्ति के रूप में उभरने के सपने को सच किया है। इसके लिए भारत को उन उभरती चुनौतियों की भी पहचान करने की आवश्यक्ता है, जिनका आने वाले समय में सामना किया जा सके।

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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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