राजस्थान के पाली जिले के बेड़ा गांव का युवा आज स्थानीय आदिवासियों में काफी प्रसिद्ध हो रहे हैं। दरअसल राजेश ओझा, 12वीं तक ही पढ़ पाए। उन्होंने नौकरी की तलाश करते हुए मुंबई का रूख किया। वहां उन्होंने कई अलग-अलग जगहों पर नौकरी की, लेकिन उनके दिमाग में खुद के व्यवसाय की बात चलती रहती थी। असल में राजेश के मन में ये बात थी कि वो किसी भी तरह से खुद का व्यवसाय करें। लेकिन उन्हें कभी सफलता मिली तो कभी असफलता। इस तरह उन्होंने अपने जीवन के लगभग 16-17 साल संघर्षों में गुजार दिए। लेकिन आज उनका अपना व्यवसाय है, यही नहीं वे कई महिलाओं को रोजगार भी दे रहे हैं।
एग्रोफूड बिजनेस से जुड़े
राजेश ने मुंबई छोड़कर अपने गांव का रुख किया जहां उन्होंने राजेश जोवाकी एग्रोफ़ूड नामक एक सोशल एंटरप्राइज की स्थापना की जिसके ज़रिए वे उदयपुर के गोगुंदा और कोटरा क्षेत्र के आदिवासी समुदायों को रोज़गार मुहैया करा रहे हैं।
राजेश अपने गांव में देखा कि गांव की आदिवासी महिलाएं 10-15 किमी पैदल चलकर मौसमी फल बेचने का काम करतीं हैं। समय पर नहीं बिक पाने की वजह से खराब हुए फलों को कई बार उन्हें फेंकना तक पड़ता था। राजेश ने इसी समस्या को अवसर के रूप में भुनाया।
गांव से शुरू किया व्यवसाय
राजेश ने इस समस्या के समाधान के साथ अपने लिए एक रोजगार भी खोजा। उन्होंने गांव की महिलाओं को फ़ूड प्रोसेसिंग के बारे में समझाने का प्रयास किया। साथ ही जामुन और सीताफल जैसे फलों से कुछ प्रोडक्ट्स बनाने का काम शुरू किया। इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे महिलाओं का समूह बनाया और सभी को ये उम्मीद दिलाई की उनसे बाजार भाव में फल हर दिन राजेश खरीदेंगे। साल 2017 में राजेश ने जोवाकी एग्रोफ़ूड इंडिया की नींव रखी और इसे कोई कमर्शियल कंपनी बनाने की बजाय सोशल एंटरप्राइज के रूप में खड़ा कर दिया। उन्होंने महिलाओं को कई चरणों में ट्रेनिंग दी और हर गाँव में संग्रहण केंद्रों को तैयार किया, जहां महिलाएं सीताफल और जामुन आदि इकट्ठा करती हैं। राजेश की इस कोशिश से अपने फलों के दाम तो मिले ही साथ ही फ़ूड प्रोसेसिंग का काम भी उन्हें मिल गया। आज राजेश, सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफार्म के ज़रिए इन महिलाओं के बनाए प्रोडक्ट्स बेचकर करोड़ों का बिजनेस कर रहे हैं। उनके इस कदम से राजस्थान की 1200 आदिवासी महिलाओं को रोजगार से जोड़कर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त किया है।