

किसी भी प्रोडक्ट को खरीदते समय हम उसकी वारंटी और गारंटी दोनों देखते हैं। पर कितने ही लोग कुछ खरीदते समय इस बात से वाकिफ होते हैं उस उत्पाद को लेकर आपके कानूनी अधिकार क्या हैं। दरअसल उपभोक्ता को खरीदी करते समय अपने कानूनी अधिकार के बारे में जानकारी होनी चाहिए। अगर उपभोक्ता जागरूक रहेंगे तो कंपनियां भी बेहतर उत्पाद लाएंगी। लेकिन इसके बावजूद भी कुछ कमियां रह ही जाती है। कई बार ऐसा भी होता है कि प्रक्रिया की जानकारी नहीं होने से शिकायतों का समाधान नहीं हो पाता है। उपभोक्ताओं को किसी तरह की परेशानियां न हो इसलिए उपभोक्ता अदालतें सरल, सस्ता माध्यम हैं। इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि एक कंज्यूमर होने के नाते क्या हैं आपके कानूनी अधिकार….
उपभोक्ता की परिभाषा
उपभोक्ता की परिभाषा में कोई भी व्यक्ति तब आते हैं जब वे कोई सेवा या सामग्री को अपनी निजी इस्तेमाल के लिए खरीदता है। व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए खरीदी की स्थिति में व्यक्ति उपभोक्ता नहीं कहलाएगा।
करें सही फोरम का चुनाव
नियम के अनुसार एक करोड़ रुपए से कम के लिए जिला, 1-10 करोड़ से कम के लिए राज्य और 10 करोड़ से ज्यादा के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में मदद मिलती है। किसी भी तरह की घटना होने की तारीख से दो साल के भीतर केस दायर कर सकते हैं।
अपने केस में तथ्यों को मजबूती से रखें
कानूनी नजरिये से देखें कि आपका कानूनी पक्ष और आपका केस कितना वाजिब और मजबूत है। मान लेते हैं कि आपने एक साल की वारंटी वाला टीवी खरीदा है। दो साल बाद खराबी आने पर आप यह दलील नहीं दे सकते कि इसे पांच साल तक चलना चाहिए।
शर्तों का पालन करना जरूरी
इसी तरह मोटर दुर्घटना मामले में आपके पास वैध रजिस्ट्रेशन या परमिट नहीं है तो अदालत करार की शर्त के उल्लंघन पर दावा राशि से मना कर सकती है। ऐसा अक्सर होता है कि एजेंट बीमा फॉर्म भरते हैं और ग्राहक बिना नियम कानून जानें आंख मूंदकर साइन कर देते हैं। ये भी देखा जाता है कि एजेंट अक्सर पहले से मौजूद बीमारी की जानकारी नहीं देते हैं। ऐसी स्थिति में अपने नियमों को अनदेखा न करें।
पहले उपभोक्ता अदालत राहत के तौर पर बीमा राशि का कुछ अंश ही दे देती थीं। अब अदालतें ऐसा मानती हैं कि आपने साइन किए हैं तो आपने शर्तों पर सहमति दी है। यही वजह है कि इसे देखते हुए उपभोक्ताओं को सावधानी से करार को पढ़ना चाहिए।