वेस्ट मैनेजमेंट का शानदार उदाहरण ये शहर, मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी सेंटर्स की अहम भूमिका!

“Waste to Best” की टेक्नीक को जिसने समझ लिया, वहां बीमारीयों का खात्मा, नौकरियों का सृजन, पर्यावरण का संरक्षण सबकुछ हो सकता है। ये हम सिर्फ कह नहीं रहे हैं भारत में ऐसे शहर मौजूद हैं। जहां कचरा प्रबंधन यानीं कि वेस्ट मैनेजमेंट के लिए शानदार प्रक्रिया अपनाई जा रही है। यहां के लोग साफ-सुथरे माहौल में तो हैं ही साथ ही रोजगार और बेहतर लाइफ स्टाइल की तरफ मुड़ चुके हैं। इस लेख के माध्यम से हम आपको उन शहरों के बारे में बता रहे हैं जहां वेस्ट मैनेजमेंट के लिए ‘मैटेरियल रिकवरी सेंटर्स’ महत्वूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर देश के लिए मिसाल

छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तरी छोर में स्थिति है सरगुजा जिला, यहां का जिला मुख्यालय है अंबिकापुर। ये छोटा सा शहर अपने वेस्ट मैनेजमेंट और स्वच्छता के लिए कई राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुका है। सबसे खास बात ये है कि सफाई का पूरा दारोमदार यहां की सफाई दीदियों पर टिका है। इस शहर ने वेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को ‘दीदियों’ का दर्जा देकर मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (MRF) सेंटर्स पर सैकड़ों नए रोज़गार के अवसर दिए हैं। इस तरह शहर से लेकर राज्य स्तर तक यहां ‘आत्मनिर्भर भारत’ का एक जीवंत उदाहरण दिखाई देता है।

अंबिकापुर में कचरे को 37 श्रेणियों में अलग करने का काम होता है। अगर ये कहें कि छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर शहर देश और दुनिया के वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम को भविष्य की नई राह दिखाने का काम कर रहा है तो गलत नहीं होगा। 

मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी सेंटर्स से रोज़ाना कई टन कूड़े की प्रोसेसिंग होती है। यहां शहरों के विभिन्न इलाकों से डोर-टू-डोर कलेक्शन के बाद हर तरह का कूड़ा पहुंचता है। गीले कचरे को सुखाकर खाद में और सूखे कूड़े को कई श्रेणियों में सेग्रीगेट कर उसका निपटान किया जाता है। अंबिकापुर में घर-घर से कचरे को एमआरएफ सेंटर लाकर 20 जैविक और 17 अजैविक श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। इसमें जानवरों के खाने योग्य सामग्री को उन्हें खिला दिया जाता है। 

जैविक कचरे में से ताज़ा सब्ज़ियों के अवशेषों जैसे अण्डे के छिलके, संतरे के छिलके को अलग कर गोबर में मिलाकर खाद तैयार किया जाता है। वहीं अजैविक कचरे को कागज़, गत्ता, धातु, प्लास्टिक इत्यादि 17 श्रेणियों में अलग कर देते हैं। 

इनमें भी प्लास्टिक कवर को 22, प्लास्टिक आइटम 31, मेटल 5, रबड़ आइटम 8 और बोतल आयटम को 15 किस्मों में बांट दिया जाता है। तो काग़ज़ को 13 और कार्डबोर्ड 9 किस्मों के आधार पर अलग कर लेते हैं। इन्हें बेचकर अबतक इस सेंटर ने 6 करोड़ रुपए की कमाई की है।

पणजी का ‘16-वे सेग्रीगेशन’

गोवा के पणजी, यहां ‘16-वे सेग्रीगेशन’ मॉडल पणजी में बढ़ते कचरे के भार को कम करने की दिशा में काम कर रहा है। निगम क्षेत्र के सॉलिड वेस्ट के बदले बेहतर वसूली और वेस्ट रीसाइकल करने में शहर की मदद के लिए, निगम ने साल 2020 में मैटीरियल रिकवरी फैसिलिटी सेंटर में सूखे कचरे के ‘16-वे वेस्ट स्रेगीगेशन’ की अनोखी पहल की शुरूआत की थी। यह विशेष व्यवस्था 35 रेजीडेंशियल कॉलोनियों में शुरू है। पणजी शहर निगम ने इन सभी कॉलोनियों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर और स्टोरेज सिस्टम मॉडल को डिजाइन करता है। पणजी की यह व्यवस्था ‘जीरो वेस्ट’ की दिशा में बड़ा परिवर्तन लाने की दिशा में काम कर रहा है।

बेंगलुरू में रिड्यूस, रियूज और रीसाइकल

3R’s का ‘कर्तव्य’ पर बेंगलुरू काम कर रहा है, जिसका मतलब है रिड्यूस, रियूज और रीसाइकल। बेंगलुरु में भी कचरे को गीले सूखे के अलावा दूसरी तरह से अलग किया जा रहा है, लेकिन यहां इसे खत्म करने पर नहीं बल्कि दोबारा उपयोग करने के लिए काम किया जाता है। कर्नाकट राज्य के बेंगलुरु में रिड्यूस, रियूज और रीसाइकल यानी 3R’s का कर्तव्य याद दिलाते हुए एक अनोखा प्रयास हो रहा है।

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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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