किसी कमजोर या जरूरतमंद परिवार की मदद से बड़ा पवित्र कार्य दूसरा कोई नहीं है। आज कई संस्थाएं और सामाजिक संगठन ऐसे परिवारों में होने वाले विवाह समारोहों में खुल कर मदद कर रहे है। इस काम के लिए शहर में भेल, चाट और गुपचुप बेचने वालों ने भी संगठन बनाया है |
विवाह समारोहों में सामाजिक संगठनों और संस्थाओं द्वारा मदद किए जाने से एक तरफ दहेज़ और फिजूलखर्ची पर रोक लगती है तो दूसरी तरफ जरूरतमंद परिवार को किसी के आगे हाथ फैलाने की नौबत नहीं आती। समाजसेवा के क्षेत्र में हरिबोल निराश्रित और विकलांग उत्थान सेवा संस्थान ने एक मिसाल पेश की है। संस्थान में 12 सदस्य हैं जो शहर और आसपास के इलाके में भेल, चाट और गुपचुप बेचते हैं। इन लोगों ने वर्ष 2013 से दिव्यांग की सेवा करने और उनकी शादी कराने का बीड़ा उठाया।
उनकी शादी कराने का बीड़ा उठाया। संस्थान की मदद से अब तक 100 से ज्यादा दिव्यांग युवक-युवतियों की शादियां कराई जा चुकी हैं। संस्थान के रामजी साहू बताते हैं कि संगठन के किसी भी सदस्य के पास अपना मकान नहीं है। हम सभी किराए के घरों में रहते हैं। कोशिश होती है कि रोज की कमाई में से अपने परिवार और घर खर्च के बाद कुछ रकम बचा ली जाए। हम बचत के पैसों से जरूरतमंदों की शादियां कराते हैं। शादी तय होने के बाद कई सक्षम लोग भी अब संस्थान को सहयोग देने लगे हैं।