महिलाओं के लिए मिसाल हैं भारत की पहली महिला फायर फाइटर हर्षिनी कान्हेकर!



महिलाएं किसी से कम नहीं, ऐसा जब हम कहते हैं तो वे सभी रोल मॉडल्स हमारे सामने घूम जाती हैं जिन्होंने समाज की दिशा और दशा दोनों को बदला है। ऐसी बदलाव की दिशा तय करने वाली एक महिला हैं हर्षिनी कान्हेंकर। उनकी कहानी काफी दिलचस्प होने के साथ ही काफी प्रेरणादायी भी है। वे भारत की पहली पहली महिला फायर फाइटर हैं।

उनके बुलंद हौसले का परिचय आप उन्हें देखकर ही लगा सकते हैं, क्योंकि जिस तरह से वह अपनी इस जिम्मेदारी को संभालती हैं वो काबिले तारीफ है। फायर फाइटर के तौर पर हर्षिनी कान्हेकर की जिंदगी का ज्यादातर समय कड़ी मेहनत और ड्रिल एक्टिविटिज में बीतता है। बचाव कार्य के दौरान इस्तेमाल होने वाले भारी उपकरण को संभालने और उठाने में भी वो पूरी तरह से एक मंझी हुई कुशल योद्धा लगती हैं। यही नहीं हर्षिनी को भारी वाहनों, पैरामेडिक्स, नगर नियोजन और बचाव तकनीक की भी काफी जानकारी है। पानी की आपूर्ति और दूसरे लोगों के मनोविज्ञान को समझने की कला उनमें पूरी तरह से है।

हर्षिनी कान्हेकर के बारे में

हर्षिनी कान्हेकर बचपन से सशस्त्र बल में शामिल होना चाहती थीं और सेना की वर्दी पहनकर देश की सेवा करना उनका सपना था। 26 साल की उम्र में उन्होंने फायर और आपातकालीन सेवाओं के एक कोर्स में दाखिला लिया। इस कोर्स को पास करने के बाद हर्षिनी कान्हेकर ऑयल एंड नैचुरल गैस कमिशन (ओएनजीसी) में बतौर फायर इंजीनियर तैनात हुईं। उन्होंने फायर इंजीनियरिंग का कोर्स नागपुर स्थित नेशनल फायर सर्विस कॉलेज से पूरा किया। वह पहली भारतीय 
महिला थीं जिन्होंने साल 2002 में इस कोर्स में प्रवेश लिया। इतना ही नहीं, वे पहली महिला भी बनीं जिन्होंने इस कोर्स में एडमिशन के बाद उसे पास कर आगे बढ़ीं।

मिसाल है हर्षिंनी कान्हेकर

हर्षिनी कान्हेकर ने एक ऐसे फील्ड में अपनी कुशलता का परिचय करवाया जहां कभी सिर्फ पुरुषों का वर्चस्व था। हर्षिनी कान्हेकर ने नागपुर से अपनी पढ़ाई पूरी की है, वे एक एनसीसी कैडेट भी थीं। यहीं से उन्हें सेना में वर्दी पहनने की प्रेरणा मिली।

महिला होने की वजह से हर्षिनी का फार्म हुआ था रिजेक्ट

ऐसा नहीं है कि हर्षिनी को सबकुछ आसानी से मिल गया। एक बार वे अपने पिता के साथ संस्थान में फॉर्म भरने गईं, वहाँ मौजूद लोगों ने हर्षिनी का फॉर्म अलग रख दिया था। तब उन्होंने निश्चय किया कि नौकरी करनी है तो बस यहीं करनी है। उनका कहना है कि लोग असहज थे और सभी चाहते थे कि हर्षिनी कॉलेज छोड़कर चली जाएँ। परेशानियां कई आईं पर हर्षिनी ने हार नहीं मानी।

उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा “मुझे नहीं लगता कि कोई नौकरी केवल पुरुषों के लिए है या सिर्फ महिलाओं के लिए है। मैं खुद को काफी भाग्यशाली मानती हूं कि मैंने नंबर एक स्थान पाया है। पर सच कहूं कि तो मेरी जिसमें दिलचस्पी थी, जिसे मैं प्यार करती थी वास्तव में आज मैं वही काम कर पा रही हूं।“ हर्षिनी कान्हेकर को बाइक चलाना पसंद है, साथ वे गिटार और ड्रम भी बजाती हैं। फोटोग्राफी में भी उनकी दिलचस्पी है।


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Dr. Kirti Sisodhia

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