Zero Tillage Farming: जीरो टिलेज से बुवाई एक ऐसी तकनीक है जिसमें खेत की जुताई करने के लिए समय बर्बाद नहीं होता है। दरअसल धान की फसल की कटाई के बाद खेत में काफी अच्छी नमी होती है। जिससे जीरो टिलेज मशीन की मदद से गेहूं के बीजों की बुवाई करना किसानों के लिए लाभदायक होता है। इसमें अलग से सिंचाई करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है। जानते हैं जीरो टिलेज तकनीक के बारे में सबकुछ
जीरो टिलेज तकनीक
पारंपरिक तकनीक से गेहूं की बुवाई के लिए 5 से 6 बार खेत की जुताई होती है, लेकिन इसका कुछ खास फायदा नहीं दिखता है, बल्कि धरती की सतह अंदर तक ढ़ीली हो जाती है और गेहूं का बीज ज्यादा अंदर जाने से ठीक तरह अंकुरित नहीं हो पाता है। जिसकी वजह से पौधे कम बनते हैं। फसल का उत्पादन कम और इन सब का खर्च बढ़ने से किसानों का मुनाफा घट जाता है।
जीरो टिलेज विधि से बुवाई के समय में 10 से 20 दिन की बचत हो जाती है। साथ ही उत्पादकता के साथ अतिरिक्त खर्च को भी कम किया जा सकता है।
यह एक आधुनिक कृषि उपकरण है, जिसे ट्रैक्टर के साथ जोड़कर काम लिया जाता है। इस उपकरण से खेत में गेहूं की बुवाई कतारों में होती है। बिना जुताई के ही गेहूं के बीजों का अच्छा जमाव भी हो जाता है। इसकी वजह से कम समय और कम मेहनत में अच्छे परिणाम भी देखने को मिलते हैं। एक रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि जीरो टिलेज मशीन से हर तरह की मिट्टी में गेहूं की बुवाई होती है।
जहां गेहूं की खेती के लिए तीन बार जुताई और एक बार खेत में पाटा लगाने की जरूरत पड़ती है वहीं इस तरीके से जुताई के साथ-साथ बीजों की बुवाई खाद, उर्वरक समेत सभी चीजें खेतों में अपने आप चली जाती हैं। इस तरह कम समय में बीजों का अंकुरण होता है और फसल भी समय से पहले ही तैयार हो जाती है। इस मशीन के उपयोग से किसानों को प्रति हेक्टेयर में 1000 से 1500 रुपए तक का लाभ मिलता है।
इस मशीन की खरीदी पर केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से सब्सिडी भी दी जाती है। मशीनीकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एक पोर्टल भी लॉच किया है।