अक्सर करियर एक्सपर्ट्स की ये सलाह होती है कि कुछ बेहतर करने के लिए कंफर्ट जोन से बाहर आना जरूरी होता है। कंफर्ट जोन से बाहर आकर ही हमें अपनी क्षमताओं का पता लगता है। हम ये जान पाते हैं कि हमारी प्रतिभा को हम और कैसे निखार सकते हैं। इसलिए हमारी कोशिशों में यह शामिल होना चाहिए कि हम अपने कंफर्ट जोन से बाहर आएं।
‘कम्फर्ट जोन’
‘कम्फर्ट जोन’ वह दायरा होता है जिसके भीतर हम काम करते हैं। इस दायरे से बाहर जाने के बारे में हम सोच भी नहीं पाते हैं। या हम डरते हैं कि हम आगे बढ़कर कुछ कर पाएंगे या फिर नहीं। सीधे शब्दों में कहें तो हमारे काम करने का वह दायरा जहां हमें एक्स्ट्रा एफर्ट न करने पड़े, और खुद को हम सुरक्षित भी लगे।
उदाहरण के लिए अगर आप हिंदी मीडियम के छात्र हैं और आपको अंग्रेजी सीखने में दिक्कत हो रही है या फिर आप अंग्रेजी सीखने बोलने को डर की तरह से ले रहे हैं अपने लिए उन माध्यमों का चुनाव कर रहे हैं जहां आपको अंग्रेजी से जुड़ी कोई असहज स्थिति का सामना न करना पड़े तो यही आपका कंफर्ट जोन है।
‘कम्फर्ट जोन’ से बाहर निकलना जरूरी
• सही समय पर कंफर्ट जोन से बाहर नहीं निकलने पर आप अपनी क्षमता के अनुरूप काम नहीं कर पाएंगे।
• कंफर्ट जोन आपको कोशिश करने से रोकती है।
• कंफर्ट जोन आपको कुछ नया सीखने और अनुभव नहीं करने देती है।
कंफर्ट जोन से निकलने के 5 पावर टिप्स
खुद की क्षमता को पहचानें खुद से बात करें और छोटे-छोटे कदम उठाएं।
आने वाली परेशानियों या बैरियर के बारे में पहले से धारणा न सेट करें।
उन परिस्थितयों के बारे में विचार करें जब आप अपना बेस्ट दे सकते हैं।
अगर आप लो फील करते हैं तो अपने करीबियों से बात करें, सहायता लें।
अपने असली डर का पता लगाएं।
नोट – यह लेख अखबारों के रिपोर्ट्स और सर्वे पर आधारित है।