लगता है कि कल ही की बात है जब हमने ड्रोन को पहले पहल जाना था। कुछ तकनीकी एडवांसमेंट और कुछ मनोरंजन के साधन के तौर पर ये कुछ समय पहले ही इंट्रोड्यूस हुए। तब ज्यादातर यह छोटे ड्रोन्स शौक और मनोरंजन का जरिया थे। लेकिन अब ये बड़े निवेशकों के सपनों की उड़ान भरते नजर आ रहे हैं।
कई क्षेत्रों में हो रहा है ड्रोन्स का काम
ड्रोन्स का उपयोग आज निर्माण कार्यों का निरीक्षण, फसलों का सर्वे, वीडियो फिल्मिंग, दवाइयां पहुंचाने और कई जगहों में शॉपिंग का सामान, पिज्जा डिलीवरी जैसे व्यावसायिक कामों में हो रहा है। लेकिन, विमानन नियामकों ने दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ऐसी उड़ानों की सीमा को फिक्स कर दिया है।
ब्रिटिश सरकार बना रही है सुपरहाइवे
लेकिन इन सब के इतर ब्रिटिश सरकार ने ड्रोन्स को आसमान में आजादी देने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा सुपरहाईवे बनाने का निर्णय लिया है। 18 जुलाई को फर्नबोरो एयर शो में बिजनेस सेक्रेटरी ने इसके संबंध में घोषणा की थी। स्काइवे प्रोजेक्ट योजना के तहत ब्रिटिश सरकार 265 किलोमीटर लंबा ड्रोन सुपरहाईवे रीडिंग, ऑक्सफोर्ड, मिल्टन केन्स, कैम्ब्रिज, कोवेंट्री और रग्बी शहरों के हवाई स्पेस को जोड़ने का काम करेगी।
बाद में इस क्षेत्र का विस्तार साउथेम्पटन और इप्सविच तक होगा। फिलहाल कॉमर्शियल ड्रोन्स को ड्रोन ऑपरेटर की दृष्टि के दायरे से बाहर उड़ाने की परमिशन नहीं है। लंबी उड़ानों में खर्च बढ़ता है क्योंकि मैदानी पायलटों और पर्यवेक्षकों को ड्रोन के हवाई मार्ग पर साथ-साथ चलना होता है। ब्रिटिश सिविल एविएशन अथॉरिटी ने ऐसी पाबंदियों के साथ कुछ ड्रोन्स को उड़ानों को इजाजत दी हुई है। लेकिन, इसकी प्रक्रिया काफी जटिल है और आसपास के एयरस्पेस को बंद करना होता है।
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