

बजट और बचत दो ऐसी चीजें हैं जो हर किसी के बस की बात नहीं है। सही बजट बनाना और बचत पर कायम रहना काफी जरुरी है ऐसे में आपक बजट और बचत का सही तरीक़ा पता होना चाहिए।
ये बिल्कुल आम कहावत है कि- पहले बचत, फिर बजट। अपनी आय में से बचत का हिस्सा पहले ही अलग कर देना काफी समझदारी का काम है और फिर शेष हिस्से से घर-बाहर के लिए बजट बनाना चाहिए।
शॉपिंग को करें सीमित
कई बार जब हम शॉपिंग करते हैं तो एक साथ कई चीजें खरीद लेते हैं जिनकी जरूरत हमें नहीं होती है। ऐसे में जब भी किसी शॉपिंग मॉल या सुपर मार्केट में ख़रीदारी के लिए जाते हैं तो ज़रूरत का सामान ख़रीदने के साथ-साथ वो सामान भी रख लेते हैं जिसकी इतनी जरूरत नहीं है। उदाहरण के लिए राशन ख़रीदने गए हैं और कोई बोतल या डलिया आकर्षक लग रही है तो आगे कभी काम आएगी सोचकर उसे भी खरीद लिया। लेकिन यहां पर बेहतर होगा कि एक समय तय करें जिसमें आपको सिर्फ़ ज़रूरत का सामान खरीदना है। इसके लिए तय किए गए समय का अलार्म लगाकर खुद को रोक सकते हैं।
नक़द में बजट तैयार करना होगा बेहतर
पूरे महीने का बजट तो सब बनाते हैं, लेकिन उससे कहीं ज्यादा खर्च कर देते हैं। इसके पीछे दो वजहें हैं, पहला कि हम थोड़ा-थोड़ा करके ज्यादा ख़र्च करते हैं, जैसे कि रोज़ाना पंद्रह-बीस रुपये वाली चॉकलेट, पांच-दस रुपये की चाय । दूसरा इनका भुगतान अमूमन यूपीआई जैसे साधनों की मदद से करते हैं जिसका हिसाब तत्काल रखना संभव नहीं होता है। इसलिए एक दिन में कितना ख़र्च हो रहा है इस पर ध्यान नहीं जाता है। बेहतर होगा कि बजट बनाएं लेकिन नक़द में सही होगा। रिसर्च कहती है कि जो लोग नक़द में पैसे ख़र्च करते हैं वे ऑनलाइन या क्रेडिट कार्ड से ख़र्च करने वाले लोगों से 5 फीसदी कम ख़र्च करते हैं। तो अगर आप महीने का बजट बना रहे हैं तो नक़द में बनाना सही होगा। महीने का ख़र्च तय करना और उतना ही नक़द लिफ़ाफ़े में रखना कारगर हो सकता है।
हर हफ्ते डालें बजट पर नजर
बजट के प्रति ईमानदार रहना बेहद कठिन है पर बहुत मददगार भी। हम अक्सर महीने की पहली तारीख़ को बजट तैयार करते हैं आख़िरी तारीख़ तक देखते तक नहीं कि उसमें से हम कितना ख़र्च कर गए हैं। लिहाज़ा बजट बनाने के बाद हर हफ़्ते इस बात की टैली जरूर करें कि आप अपने बजट के हिसाब से चल रहे हैं या नहीं।
बचत की समझ जरूरी
हर महीने की अलग-अलग ईएमआई देना, ब्रैंड पर ख़र्च करना और सोच-समझकर ख़रीदारी न करना, बचत पर असर डालता है। तो बेहतर है कि आप हर महीने आय का कुछ भाग केवल लोन चुकाने के इरादे से सेविंग अकाउंट में सुरक्षित करें इससे आपका बोझ कम होगा। इसके साथ ही जिन वस्तुओं की अधिक आवश्यकता नहीं है उस पर ख़र्च करने से बचना भी काफी काम आएगा, जैसे कि मोबाइल बार-बार बदलना या मूड ठीक करने के लिए अनावश्यक कपड़े या जूते ख़रीदना।