एक मनुष्य जब अपनी पूरी गरिमा के साथ, पूरी मर्यादा के साथ, अपने पूरे स्वाभाव के साथ उपस्थित होता है, तो वो राम है। श्री राम हमारे संस्कृति का एक ऐसा आदर्श है, जिसने प्रेम और सत्यता के अनोखे प्रतिमान स्थापित किये हैं।
जिनके सामने आज सदियों बाद भी सम्पूर्ण भारतीय जनमानस नतमस्तक हैं, इतना होते हुए भी श्री राम एक चरित्र हैं, जो रोता भी है, हँसता भी है, प्रेम भी करता है। क्रोध भी करता है, आशंकित भी है। विश्वास भी करता है और शंका भी उसके चरित्र का हिस्सा है।
वहीं रावण प्रतीक है अहंकार का या ऐसे कहें कि ये प्रतीक मनुष्य की क्षमता का चरम प्रतीक है। निति शास्त्र का बड़ा पंडित है लेकिन सत्य को अपने पीछे खड़ा कर लेता है। ज्ञानी होते हुए भी अपनी बुद्धि का प्रयोग सत्य को झुठलाने के लिए करता हैं।
जब मनुष्य स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करता है, और दुसरो को कमतर, तब वो रावण बनने की ओर अग्रसर होता हैं। जिस तरह प्रकृति में मौसम बदलता है, उसी तरह मनुष्य के भीतर का मौसम भी बदलता रहता है। कभी राम तो कभी रावण, जिनका कारण हमारे आसपास होने वाली घटनायें भी हैं। जो हमें भीतर तक प्रभावित करती हैं। कहा जाता है कि दुनिया में सभी जीत में सर्वश्रेष्ठ खुद पर जीत है।
खुद पर जीत सर्वश्रेष्ठ तो है लेकिन मुश्किल भी क्योंकि मनुष्य दुनिया में सबसे ज़्यादा अपने अंदर झाँकने से डरता है। अपनी कमियों को स्वीकारना उसके लिये सबसे कठिन हैं। लेकिन जैसे एक विशालकाय वृक्ष नन्हें से बीज से उत्पन्न होकर आकार लेता है, वैसे ही मनुष्य का व्यक्तित्व भी एक संकल्प, एक विचार से उत्पन्न होकर मनचाहा आकर ले सकता है। अपने अंदर के रावण को मार कर राम को जीवित रखने के लिए संकल्प ले।
” मैं यह कर सकता हूँ और मैं यह बन चुकी हूँ। ” ये संदेश जब आपके मन, मस्तिष्क और हृदय में स्थापित हो जाता है तो बदलाव धीरे-धीरे आने लगता हैं।
नवरात्रि में शक्ति कि आराधना कर हमने अपने आप को इस संकल्प के लिए तैयार कर लिया है। हमारे भीतर के अवगुणों को हमसे बेहतर कोई नहीं जानता हैं। इंतज़ार ना करे, पहल करे, इस विजयादशमी को संकल्प पर्व के रूप में मना कर संकल्प ले कि अपने व्यक्तित्व के रावणी गुणों का वध कर, अपनी जीत सुनिश्चित करने की ओर अग्रसर होंगे।
सफर का आरंभ भी “रा” है और अंत भी “रा”। इस रा (रावण) से रा (राम) की यात्रा का शुभारंभ करें। और विजयी हो।
विजयादशमी की शुभकामनायें।