एक ऐसी गोंड रानी की कहानी जिनके सामने मुगलों ने भी मानी हार, शौर्य और सूझबूझ के दम पर बचाया अपना राज्य

तिहास में कई अनदेखे और अनसुलझे रहस्य हैं, जो इंसानों की जिंदगी में गहरी छाप छोड़ने की क्षमता रखते हैं। ऐसी ही एक प्रभावशाली ऐतिहासिक कहानी है जिसका असर आज भी देखा जा सकता है। ये कहानी है एक अनोखी रानी की, जिन्होंने स्त्री गरीमा और राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राण की आहुति दे दी। 18वीं शताब्दी की यह कहानी काफी दिलचस्प है यह गाथा है गिन्नौरगढ़ की आखिरी गोंड रानी ‘रानी कमलापति’ की।
 
कौन थी रानी कमलापति ?
इन्हें जानने के लिए हमे आज से लगभग 300 वर्ष पहले , 18वी शताब्दी के पन्नों को पलटना पड़ेगा। उस वक़्त भोपाल से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटी सी लेकिन बेहद महत्वपूर्ण जगह थी। उस रियासत का नाम था गिन्नौरगढ़। तब गिन्नौरगढ़ में निजाम शाह का शासन था। इनकी 7 पत्निया थी। इन्ही सात में से एक बेहद खूबसूरत , निडर और बहादुर रानी थीं रानी कमलापति। राजा का रुझान सबसे ज़्यादा रानी कमलापति की तरफ था। राजा की संपत्ति और रानी की खूबसूरती से काफी ज़्यादा आकर्षित था आलम शाह। आलम , निजाम शाह का भतीजा और बाड़ी का शासक था। अपने ही चाचा के धन दौलत पर नज़र गड़ाए आलम ने रानी से अपने भावनाओ को व्यक्त किया। इस प्रेम प्रस्ताव को रानी कमलापति ने ठुकरा दिया।
 
राजा निजाम की हत्या
इतिहासकारो की मानें तो आलम शाह अपने चाचा निजाम की हत्या करने के मौके तलाशता था। और एक दिन उसने निजाम के खाने में ज़हर मिला दिया। ज़हर राजा की मौत होने के बाद रानी कमलापति और उनके बेटे नवल शाह के ऊपर भी खतरा मंडराने लगा। ऐसी विषम परिस्थिति में रानी अपने बेटे को लेकर भोपाल में स्थित ‘रानी कमलापति महल’ आ गईं।
 
मदद के बदले दिए 1 लाख रूपये
रानी कमलापति आर्थिक और सैन्य तौर पर इतनी सशक्त नहीं थी कि बिना किसी की सहायता के वह आलम शाह को पराजित कर पाती। अपने पति की हत्या का बदला लेने के लिए रानी ने दोस्त मोहम्मद खान से मदद की अपेक्षा की। मदद मांगने पर मोहम्मद खान से इसके एवज में 1 लाख रूपये की मांग की। इतने पैसे न होते हुए भी रानी मोहम्मद की इस मांग के लिए हामी भर देती हैं।
दोस्त मोहम्मद खान भोपाल आने के पहले मुग़ल सेना का हिस्सा था। एक बार की बात है , जब मुग़ल सेना संपत्ति लूट कर आई। लूटे धन के हिसाब-किताब में गड़बड़ी मिलने की वजह से मोहम्मद खान को सेना से निकल दिया गया था। वहां से निकलने के बाद उसने भोपाल के निकट जगदीशपुर में अपना शासन स्थापित किया।
 
रानी कमलापति ने आलम शाह से लिया था बदला
दोस्त मोहम्मद ने कमलापति के साथ मिलकर राजा आलम शाह पर हमला किया और उसे मार डाला, और इस तरह कमलापति ने अपने पति की हत्या का बदला लिया। हालाँकि, समझौते के मुताबिक , रानी के पास दोस्त मुहम्मद को देने के लिए एक लाख रुपये नहीं थे। ऐसे में रानी ने उन्हें कुछ राशि के साथ भोपाल का हिस्सा दे दिया। लेकिन रानी कमलापति के बेटे नवल शाह इस बात से काफी नाराज हुए। और उन्होंने दोस्त मोहम्मद के खिलाफ जंग छेड़ दी। इतिहास में यह कहा गया है कि दोस्त मोहम्मद ने नवल को जहर देकर धोखा दिया था। वास्तव में क्या हुआ था इसका पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता।
इतिहासकार शम्भू दयाल गुरु ने कहा की जब तक रानी जीवित रहीं तब तक कभी भी दोस्त मोहम्मद खान ने भोपाल पर आक्रमण नहीं किया। रानी की मृत्यु के बाद ही मोहम्मद खान ने भोपाल पर कब्ज़ा किया। उनके अनुसार दोस्त मोहम्मद और रानी कमलापति के सम्बन्ध काफी अच्छे थे। वही दूसरी ओर कुछ का कहना है मोहम्मद खान पूरे भोपाल रियासत पर कब्ज़ा करना चाहता था। यहाँ तक की रानी कमलापति के सामने यह प्रस्ताव भी रखा की रानी उनके हरम में शामिल हो जाए और उससे शादी कर ले।
 
युद्ध की ललकार , नवल पर वार
मोहम्मद खान के इस प्रस्ताव के बारे में जानने के बाद, नवल शाह काफी क्रोधित हुआ और 100 लड़ाकों के साथ लाल घाटी में युद्ध करने के लिए निकल पड़े। इस युद्ध में महज़ 14 वर्ष के नवल की मृत्यु हो गई। ऐसा कहा जाता है कि घाटी में इतना खून बहा जैसे कि लाल नदी बह रही हो और यही वजह है कि इसे लाल घाटी के नाम से जाना जाता है।
बचे लड़ाकों के द्वारा रानी कमलापति को युद्ध में हार जाने की सूचना दी गई। यह समाचार सुनते ही रानी ने तालाब का संकरा रास्ता खुलवा दिया और अपनी धन संपत्ति समेत जल – समाधी ले ली।
जबतक दोस्त मोह्हमद खान वहां पहुंचा सब कुछ ख़त्म हो चुका था। लगभग 1723 में रानी की मृत्यु के बाद भोपाल पर नवाबों का कब्ज़ा हुआ।
संस्कृति और नारी स्मिता की रक्षा करते -करते रानी कमलापति का प्राण त्यागना उन्हें इतिहास के पन्नो में अमर बना दिया। यहाँ तक की भारतीय इतिहास को पुनः स्थापित करने और ऐसी वीर रानी के सम्मान में भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन रख दिया गया।
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Rishita Diwan

Content Writer

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