Sunita Williams: जब भी अंतरिक्ष में भारतीय जड़ों से जुड़ी महिलाओं की बात होती है, तो कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के नाम गर्व से लिए जाते हैं। सुनीता विलियम्स न केवल एक अनुभवी अंतरिक्ष यात्री हैं, बल्कि उनका संघर्ष, धैर्य और जिज्ञासा आज भी लाखों युवाओं के लिए प्रेरणादायक है। जानते हैं उनके इस अनोखे सफर की पूरी कहानी।
अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत
5 जून 2024 को, नासा और बोइंग के संयुक्त मिशन के तहत, सुनीता विलियम्स और उनके साथी बुच विलमोर “स्टारलाइनर” स्पेसक्राफ्ट से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए रवाना हुए। इस मिशन का उद्देश्य न केवल अनुसंधान करना था, बल्कि यह नासा और बोइंग के क्रू फ्लाइट टेस्ट का भी हिस्सा था। हालांकि, ISS पहुंचने के बाद, तकनीकी समस्याएं सामने आईं।
तकनीकी खराबी और अनिश्चित भविष्य
ISS पहुंचने के बाद, स्टारलाइनर में 5 हीलियम लीक हो गए, 5 थ्रस्टर्स ने काम करना बंद कर दिया और एक प्रोपलेंट वॉल्व भी बंद नहीं हुआ। इस खराबी के कारण, सुनीता और बुच की धरती वापसी अनिश्चित हो गई। मिशन अधर में लटक गया, और उन्हें आठ महीने तक ISS में रहना पड़ा।
धरती पर वापसी की योजना
12 फरवरी 2025 को नासा ने ऐलान किया कि सुनीता और बुच की सुरक्षित वापसी के लिए योजना तैयार कर ली गई है। इस बार, उन्हें वापस लाने के लिए स्पेसएक्स के “ड्रैगन कैप्सूल” का उपयोग किया जाएगा। 12 मार्च 2025 को, यह कैप्सूल क्रू-10 को ISS तक पहुंचाएगा और फिर उसी से सुनीता और बुच की धरती वापसी होगी।
आग के गोले से गुजरने की चुनौती
अंतरिक्ष से धरती तक का सफर केवल तीन घंटे का होता है, लेकिन यह बेहद खतरनाक होता है। जब कोई स्पेसक्राफ्ट धरती के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो इसे “री-एंट्री” कहा जाता है। इस दौरान,
- स्पेसक्राफ्ट की गति 28,000 किमी/घंटा से ज्यादा होती है।
- तेज एयर फ्रिक्शन के कारण बाहरी तापमान 1600°C तक पहुंच सकता है।
- किसी भी छोटे-से एरर से जीवन खतरे में पड़ सकता है।
- इस कठिन परिस्थिति से गुजरने के बाद ही सुनीता और बुच धरती पर सुरक्षित उतर सकेंगे।
- धरती पर लौटने के बाद की चुनौतियां
शरीर पर कई प्रभाव
- मांसपेशियों की कमजोरी- माइक्रोग्रैविटी में रहने से मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे उन्हें फिर से चलना सीखना पड़ेगा।
- बैलेंस की समस्या- शरीर का बैलेंस बनाए रखने वाला “वेस्टिबुलर सिस्टम” माइक्रोग्रैविटी में सुस्त पड़ जाता है, जिससे उन्हें चक्कर और संतुलन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
- हवा में चीजें छोड़ने की आदत- अंतरिक्ष में चीजें खुद तैरती हैं, इसलिए एस्ट्रोनॉट्स को वापस आने के बाद इसे भूलने में समय लगता है।
- आंखों पर प्रभाव- अंतरिक्ष में तरल पदार्थ सिर की ओर बढ़ते हैं, जिससे आंखों की नसों पर दबाव पड़ता है। कई एस्ट्रोनॉट्स को लौटने के बाद चश्मा लगाना पड़ता है।
- हाई रेडिएशन के दुष्प्रभाव- अंतरिक्ष में हाई लेवल रेडिएशन से डीएनए में बदलाव, इम्यून सिस्टम कमजोर होना और कैंसर जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
धैर्य और तकनीक की परीक्षा
अंतरिक्ष से धरती तक की वापसी सिर्फ टेक्नोलॉजी की जीत नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक सहनशक्ति की भी परीक्षा होती है। सुनीता विलियम्स का यह सफर विज्ञान की एक बड़ी उपलब्धि है और यह दिखाता है कि इंसान की इच्छाशक्ति हर चुनौती पर जीत हासिल कर सकती है।
Positive सार
सुनीता विलियम्स की यह तीसरी अंतरिक्ष यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक रही। उन्होंने न केवल तकनीकी बाधाओं को पार किया, बल्कि अपनी साहसिक सोच से यह साबित कर दिया कि अंतरिक्ष अन्वेषण में इंसानी जिज्ञासा की कोई सीमा नहीं। उनका यह सफर भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक मिसाल है और भारत के युवाओं को बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित करता रहेगा।