अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैते मोक्षदायकाः॥
यानी कि सात पवित्र शहर जो अपने दर्शन करने वाले भक्तों को मुक्ति प्रदान करते हैं। ये कहा गया है उज्जैन के लिए। एक ऐसा शहर जो आध्यात्म, संस्कृति और विज्ञान का अद्भुत केंद्र है। आज की कहानी उज्जैन की ‘द सिटी ऑफ मोक्ष’
Secret of Ujjain: यहां चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने शासन किया, महाकवि कालीदास ने अप्रतिम रचनाएं की, वराह मीहिर की ज्योतिष गणना यही हुई और ये शहर महाकाल का राज्य कहलाता है। यहां कभी किसी राजा ने राज करने की हिम्मत नहीं की। तो फिर ऐसा क्या हुआ कि सम्राट विक्रमादित्य ने यहां शासन किया, क्या खुद महाकाल ने उन्हें अवंतिका की बागडोर दी थी? और क्यों राजा विक्रमादित्य के बाद किसी और राजा ने यहां अपनी छाप नहीं छोड़ी। जानेंगे अनसुनी गाथा में कहानी मोक्ष नगरी उज्जैन की
सिटी ऑफ मोक्ष- उज्जैन
रहस्यों को खुद में समेटे आज के उज्जैन को यू हीं नहीं city of moksh कहा जाता है। यहां के राजा स्वयं महाधिपति महाकाल हैं। अवंतिका, उज्जैनी, विशाला, पद्मावती और कनकश्रृंगा उज्जैन के नाम है। ये तपोभूमि आज से नहीं बल्कि इंसानों के होने से भी पहले के अपने होने के साक्ष्य देती है। जब पृथ्वी बनीं, सूर्य बनें, समय बना, काल चक्र बना तभी बनी अवंतिका।
पृथ्वी की नाभी क्यों कहलाती है उज्जैन?
उज्जैन को पृथ्वी की नाभि भी कहते हैं यानी कि navel of the earth. ऐसा इसलिए क्योंकि वैज्ञानिक ये मानते हैं कि उज्जैन, पृथ्वी और आकाश के सापेक्ष में यानी कि ठीक बीच में स्थित है। कालगणना के शास्त्र के लिए इसकी यह स्थिति हमेशा फायदेमंद रही। यही वजह है कि भारतीय पंचांग उज्जैन के समय गणना के हिसाब से होती है।
अद्भुत है उज्जैन का वेधशाला
राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला भी काफी रोमांचित करती है। ये अद्भुत है कि जब ग्रीनविच कॉन्सेप्ट नहीं था तब उज्जैन ने भारत और विदेशी देशों को समय की गणना सिखाई। बता दें कि ग्रीनविच लंदन का एक शहर है जहां से ग्रीनविच मेरिडियन , एक काल्पनिक रेखा बनाई गई है। जिसका उपयोग 0° लॉगिट्यूड दर्शाने के लिए होता है। ग्रीनविच का कॉन्सेप्ट 1851 में लाया गया था जबकि उज्जैन से टाइम कैल्कुलेशन कई सौ सालों पहले से हो रहा है।
प्राचीन है उज्जैन शहर
जब आप उज्जैन के इतिहास की तरफ देखेंगे तब साक्ष्य कहते हैं कि उज्जैन शहर 5000 साल पुराना है। लेकिन पुराणों की मानेंगे तो इसका जिक्र आदिब्रह्म पुराण में सबसे अच्छे शहरों के रूप में किया गया है। अवंतिका यानी कि उज्जैन सप्तपुरियों में से एक है जिसका अर्थ है मोक्ष देने वाला शहर। पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने महाकाल के रूप में इस शहर को बसाया और तब से लेकर आज तक स्वंयंभू आदिशिव महाकाल ही इसके राजा और संरक्षक हैं।
उज्जैन पर राज करने की किसी को नहीं इजाजत
क्षिप्रा नदी के तट पर बसी उज्जैन नगरी के अनेक नाम, अनेक चमत्कार और अनेक रहस्य हैं। पुराणों, ग्रंथों और लोककथाओं में उज्जैन के बारे में ये कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य से पहले जितने भी राजा यहां आए उन्होंने दूर से ही उज्जैन का राजकाज देखा। उज्जैन पर सीधा राज करने वाला एक ही राजा थे भगवान महाकाल, अगर कोई राजा यहां राज करता या रात रुकता तो उसके साथ कोई न कोई अनहोनी जरूर होती थी। लेकिन सम्राट विक्रमादित्य के साथ ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने उज्जैन में आधात्यमिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विकास किए।
राजा विक्रमादित्य और उज्जैन
बात पहली शताब्दी की है। इस समय पूर्वी ओडिसा में गर्दभिल्ल वंश के पराक्रमी राजा गर्दभिल्ल का शासन था। राजा गर्दभिल्ल के शासन काल में शकों ने आक्रमण कर उज्जैन और आस-पास के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। लेकिन महाकाल की इच्छा तो कुछ और ही थी। राजा गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य ने शकों के खिलाफ युद्ध किया और उन्हें बुरी तरह से पराजित किया। इसके बाद उज्जैन में गर्दभिल्ल साम्राज्य की स्थापना हुई।
विक्रमादित्य पर थी महाकाल की कृपा
कहते हैं सम्राट विक्रमादित्य न्यायप्रिय, प्रजाहितैषी और आध्यात्मिक थे। वो जनता की भलाई की लिए हर मुमकिन प्रयास करते थे। वो दूरदर्शी थे और प्रजाहित के लिए कुछ भी कर सकते थे। यही वजह है कि उन्होंने उज्जैन की बागडोर संभाली। उन्हें माता हरसिद्धि और माता बगलामुखी ने साक्षात दर्शन दिया था। और यौगनियां उज्जैन की सुरक्षा में उनकी मदद करती थीं। विक्रमादित्य के बाद किसी भी राजा ने उज्जैन पर राज नहीं किया क्योंकि वो पूरी तरह से न्यायप्रिय नहीं थे। आज भी इस नियम का अनुसरण किया जाता है। जिसके तहत यहां विजिट करने वाला कोई भी राजनीतिक नेता, बड़ा अधिकारी, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या प्रमुख राज में नहीं रुकता है। इतिहास गवाह है जिसने भी ऐसा किया, अगले दिन उसकी कुर्सी चली गई या उनके साथ कोई अनहोनी घटी।
राजा विक्रमादित्य के दरबार में थे 9 रत्न
राजा विक्रमादित्य एक ऐसे शासक थे जिन्होंने चिकित्सा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में एक अलग ही छाप छोड़ी। क्या आपने कभी अकबर के 9 रत्नों के बारे में पढ़ा है, तो बता दें अकबर के ये 9 रत्न राजा विक्रमादित्य के 9 रत्नों से प्रेरित हो सकते हैं। क्योंकि अकबर के आने के सालों पहले राजा विक्रमादित्य के दरबार के 9 रत्न आज भारत के सबसे अमूल्य धरोहरों में से एक हैं,
धनवंतरी, क्षणपक, अमर सिंह, कालिदास, वैतालभट्ट, शंकु, वररुचि, घटकर्पर, और वराहमिहिर थे। ये सभी नवरत्न अपने क्षेत्र में माहिर और विद्वान थे।
विज्ञान और आध्यात्म का केंद्र- उज्जैन
सम्राट विक्रमादित्य जानते थे कि उज्जैन आध्यात्म के अलावा विज्ञान और संस्कृति का केंद्र है इसीलिए उन्होंने अपने 9 रत्नों के साथ साहित्यिक, सांस्कृतिक और विज्ञान के क्षेत्र में अनगिनत उपलब्धियां हासिल की। वो राजा विक्रमादित्य ही थे जिन्होंने हिंदी कैलेंडर विक्रम संवत दिया। अगर उनके पराक्रम की बात करें तो विक्रमादित्य का शासन श्रीलंका से लेकर तिब्बत, चीन, आज के तुर्कमेनिस्तान, ईरान और अरब तक फैला था। अरब पर विक्रमादित्य के विजय का वर्णन अरबी कवि जिरहाम किनतोई ने अपनी किताब ‘शायर उल ओकुल’ में किया है। इस किताब को तुर्की राजधानी इस्तांबुल की लाइब्रेरी मकतलब-ए-सुल्तानिया रखे होने की बात कही जाती है।
उज्जैन वो धरा है जहां पग-पग पर भगवान महाकाल के चमत्कार होते हैं, श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा के आश्रम सांदिपनी का दर्शन होते हैं, चक्रधारी सम्राट विक्रमादित्य के न्यायाप्रिय, पौरुष और बल के साक्ष्य नजर आते हैं, कालिदास की रचनाओं वाले घाट दिखाई देते हैं और वरामिहिर अंतरिक्ष विज्ञान भारत का गौरव बताते हैं।