इतिहास में रानी लक्ष्मीबाई का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। भारत का हर व्यक्ति यह जानता है कि उन्होंने 1857 की क्रांति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। और अपने प्राणों की आहूति दे दी। लेकिन ऐसी ही एक क्रांतिकारी रानी वेलु नचियार थीं जिन्होंने रानी लक्ष्मीबाई से भी पहले अंग्रेजों को भारत की नारी शक्ति का अहसास करा दिया था। उन्होंने न सिर्फ अंग्रेजों से मुकाबला किया बल्कि अपने साम्राज्य को वापस अंग्रेजों से छीना भी। दक्षिण के राज्य रामनाड में जन्मी वेलु बचपन से ही युद्ध विद्या में निपुण थीं, साथ ही अंग्रेज़ी, फ़्रेंच और उर्दू जैसी भाषाओं में भी उनकी अच्छी पकड़ थी। वेलु विवाह के बाद शिवगंगा की रानी बनीं, वही शिवगंगा जो इतिहास में ‘कलैयार कोली युद्ध’ के नाम से काफी प्रसिद्ध है।
साल 1772 की बात है, शिवगंगा साम्राज्य और अंग्रेजों के बीच हुए भीषण युद्ध में, शिवगंगा के राजा की हार हुई और वे शहीद हो गए। अंग्रेजों को शिवगंगा पर हावी होता देख रानी वेलु ने यह तय किया, कि वे अपने साम्राज्य की रक्षा करेंगी। लेकिन रानी यह भी जानती थीं कि उनके पास फिलहाल सेना और संसाधन की कमी थी। इसीलिए उन्होंने अपनी बेटी और मारूथ भाईयों जो कि उनके अंगरक्षक थे , उनके साथ तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले के विरुप्पाची में आश्रय ले लिया।
रानी वेलु नचियार शिवगंगा को अंग्रेजों से वापस चाहती थीं और इसीलिए उन्होंने विरुप्पाची से ही अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने मारुथु भाइयों के साथ मिलकर सेना बनाई और इस काम में उनकी मदद मैसूर के शासक हैदर अली और गोपाल नायकर ने की। रानी वेलु ने सशक्त महिला सेना का गठन किया और महिलाओं को युद्ध की ट्रेनिंग दी।
इतिहास का यह एक दिलचस्प किस्सा है कि कैसे अंग्रेज़ों से रानी वेलु की लड़ाई लगभग 7 सालों तक चली। और उन्होंने हार नहीं मानी, 1780 में रानी वेलु के नेतृत्व में अंग्रेजों से भयंकर युद्ध हुआ। तभी रानी वेलु को ख़बर लगी कि अंग्रेज़ी सेना युद्ध के लिए गोला-बारुद का सहारा लेने वाली है। रानी वेलु ने अपने जासूसों से यह पता करवाया, कि अंग्रेजों ने गोला-बारूद कहां रखा है। अंग्रेजों के गोला-बारूदों और अंग्रेजी हथियारों की जानकारी होने पर रानी वेलु के सामने बड़ी समस्या थी, क्योंकि वे पारंपरिक हथियारों से युद्ध लड़ रहे थे। वे किसी भी कीमत में लंबे समय से चल रहे इस संघर्ष को हारना नहीं चाहती थीं। उन्होंने अंग्रेजों की रणनीति को असफल करने के लिए कुइली नाम की महिला सेना की मदद ली।
दरअसल कुइली एक महान सैनिक थी और वे रानी वेलु की वफादार होने के साथ ही सच्ची देशभक्त भी थी। कुइली ने ख़ुद पर घी डाला और आग लगाकर अंग्रेज़ों के गोला-बारूद और हथियार घर में कूद पड़ीं। इस तरह कमांडर कुइली ने दुनिया के पहले आत्मघाती हमले को अंजाम दिया। और रानी वेलु नचियार के नेतृत्व में अंग्रेजों की हार हुई।
इसके बाद रानी वेलु ने शिवगंगा को वापस हासिल किया, उन्होंने अपने कुशल नेतृत्व से 1789 ई. तक शिवगंगा पर शासन किया। 1796 में रानी वेलु का निधन हो गया। इतिहास में अमर रानी वेलु नचियार एक सच्ची देशभक्त तो थी ही, साथ ही उन्होंने अपने कौशल के दम पर अंग्रेजी सेना को हराया भी। यही वजह है कि उनके जीवनकाल तक किसी ने शिवगंगा पर दोबारा आक्रमण नहीं किया। उनके 7 सालों का संघर्ष उनके साहस और दृढ़निश्चय के परिचायक हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और देशप्रेम की मिसाल इतिहास के सुनहरे अक्षरों मे दर्ज है। भारत सरकार ने 2008 में रानी के सम्मान में डाक टिकट जारी किया।