Raja Jajalyadev: छत्तीसगढ़ में समय-समय पर कई वीर शासक उभरे, लेकिन एक नाम हमेशा रहस्य के पन्नों में दबा रह गया गजशार्दूल। इस नाम के पीछे छुपा इतिहास वीरता, शौर्य और शक्ति का प्रतीक माना गया, फिर भी यह इतिहास समय के साथ कहीं धूमिल हो गया।
लेकिन अगर आप छत्तीसगढ़ के उत्तर-पूर्वी हिस्से में यात्रा करेंगे, तो उनकी अमर कहानियों के अंश आज भी आपको देखने और सुनने को मिलेंगे। आज हम आपको ले चलते हैं 11वीं शताब्दी की उस अनसुनी गाथा में, जहां गजशार्दूल ने अपनी छाप छोड़ी।
11वीं शताब्दी का राजनीतिक परिदृश्य
1095 ईस्वी में छत्तीसगढ़ कई शक्तिशाली राजाओं की लड़ाइयों का मैदान बना हुआ था। उसी समय इतिहास में उभरे जाजल्यदेव प्रथम। उनका जीवन वीरता, शक्ति और कला से परिपूर्ण था। उनके गुरु थे रुद्रशिव, और उनके जीवन में पुरुषोत्तम, विग्रहराज और रानी लाच्छलादेवी जैसे व्यक्तित्व उनकी शक्ति और निर्णय में सहायक बने।
- उस समय छत्तीसगढ़ का राजनीतिक परिदृश्य जटिल था।
- कलचुरी वंश प्रमुख सत्ता के रूप में स्थापित था।
- पड़ोसी शक्तियाँ जैसे गंग, चोल, तेलुगु चोल और नागवंश लगातार चुनौती बने रहते थे।
- विशेषकर बस्तर क्षेत्र में राजेन्द्र चोल I और कुलोथुंग चोल I के आक्रमण हुए।
- स्थानीय राजवंश जैसे नागवंशी, सोमवंशी और चिदांकनाग भी सत्ता के लिए संघर्षरत थे।
इस अवधि में छत्तीसगढ़ में सत्ता का केंद्रीकरण, क्षेत्रीय युद्ध और सांस्कृतिक बदलाव लगातार जारी थे, जिससे यह क्षेत्र बाहरी आक्रांताओं और स्थानीय वंशों के बीच राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिशीलता का केंद्र बन गया।
गजशार्दूल के सिक्के
- शक्ति और स्वतंत्रता का प्रतीक
- इतिहास में उनका नाम पहली बार उनके सिक्कों के माध्यम से उभरता है।
- सोने के सिक्कों पर उनका चित्र और नाम अंकित था।
- ये सिक्के केवल मुद्रा नहीं, बल्कि स्वतंत्रता और शक्ति का संदेश भी थे।
- तांबे के सिक्कों पर हनुमान की आकृति उकेरी गई थी।
- राजा जाजल्यदेव द्वारा बनवाए गए ये प्रतीक आज भी देखने वाले हर व्यक्ति में रहस्य और उत्सुकता जगाते हैं।
जाजल्यपुर और जाजल्य महोत्सव
- जाजल्यदेव जितने साहसी और पराक्रमी थे, उतने ही कला और स्थापत्य में रुचि रखते थे।
- आज के जांजगीर-चांपा का आधार उन्हीं ने रखा था, जिसे पहले जाजल्यपुर कहा जाता था।
- हर साल यहां जाजल्य महोत्सव मनाया जाता है, जो उनके साहस और संस्कृति की याद को जीवित रखता है।
मंदिरों की स्थापत्य कला
- नकटा विष्णु मंदिर
- यह मंदिर अधूरा शिखर के साथ खड़ा है।
- भगवान विष्णु के वामन, नरसिंह, राम, कृष्ण, वराह और त्रिमूर्ति की मूर्तियाँ यहां स्थापित हैं।
- गर्भगृह खाली है, और यह रहस्य आज भी इतिहास प्रेमियों को मंत्रमुग्ध करता है।
- पाली शिव मंदिर (कोरबा)
- इस मंदिर का जीर्णोद्धार राजा जाजल्यदेव ने करवाया।
- मूल निर्माण बाणवंशीय शासक विक्रमादित्य द्वारा किया गया था।
- मंदिर द्वार पर खुदाई: “श्रीम ज्जजाजल्य देवस्यकीर्तिः”।
वीरता और युद्ध कौशल
जाजल्यदेव वीर योद्धा भी थे। उन्होंने छिन्दक नागवंशी शासक सोमेश्वरदेव को पराजित किया और उनके पूरे परिवार को बंदी बनाया। सोमेश्वरदेव की माता गुन्डमहादेवी के अनुरोध पर जाजल्यदेव ने उन्हें छोड़ दिया। संभवतः यह आक्रमण बदले के रूप में किया गया क्योंकि सोमेश्वरदेव ने पूर्व में कोसल क्षेत्र के कई प्रदेश पर अधिकार किया था। इसके अलावा, जाजल्यदेव ने गंग वंश और अन्य क्षेत्रों में भी विजय प्राप्त की। इन सफलताओं ने उन्हें कलचुरी वंश का सबसे शक्तिशाली शासक बना दिया।
जीवन का रहस्य
जाजल्यदेव का जीवन जितना वीरता और शक्ति से भरा था, उतना ही रहस्यमयी भी था। अपने अंतिम समय में वे मकरध्वज नामक जोगी के साथ चले गए और फिर कभी लौटकर नहीं आए। उनके द्वारा बनाई गई नगर और मंदिर आज भी दर्शकों और यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
वीरता, शक्ति और कला का संगम
इतना तय है कि गजशार्दूल का नाम इतिहास में हमेशा जीवित रहेगा। उनका जीवन वीरता, शक्ति और स्थापत्य कला का प्रतीक था। छत्तीसगढ़ के इतिहास और संस्कृति प्रेमियों के लिए यह गाथा आज भी प्रेरणा और रहस्य का संगम है।