जब भी भारतीय संविधान की बात आती है, डॉ बी आर अंबेडकर का नाम ज़हन में आता है। उनके अलावा पं जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेंद्र प्रसाद भी भारतीय संविधान निर्माण समिति के मुख्य सदस्य थे। लेकिन भारतीय संविधान से जुड़े एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व प्रेम बिहारी नारायण को कम ही लोग जानते हैं। प्रेम बिहारी नारायण की कहानी संविधान की पांडुलिपि से जुड़ी है। संविधान की पांडुलिपि यानि कि वह मूल किताब जिसे हाथ से लिखा गया है।
दरअसल भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा और अद्भुत लिखित संविधान है। इसकी मूल कॉपी को हिन्दी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में प्रिंट कराने के बजाय हाथ से लिखवाया गया। अंग्रेजी की कॉपी लिखने की जिम्मेदारी प्रेम बिहारी नारायण को दी गयी थी।
संविधान को लिखने में प्रेम बिहारी को 6 महीने का समय लगा और कुल 432 निब घिस गई। पेशे से कैलिग्राफर प्रेम बिहारी से पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह गुजारिश की थी कि वह संविधान की मूल कॉपी को इटैलिक स्टाइल में लिखें।
इनका पूरा नाम प्रेम बिहारी नारायण रायजादा था। बिहारी का जन्म दिसम्बर 1901 में दिल्ली में हुआ था। बचपन में ही उनके माता और पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके दादा, राम प्रसाद जी ने किया था। बिहारी के दादा राम प्रसाद खुद अंग्रेज़ी और फ़ारसी के बड़े विद्वान थे। बिहारी ने कैलिग्राफी की कला अपने दादा से सीखी थी। अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद प्रेम बिहारी नारायण दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़ने गए। यहीं पर उनकी कैलिग्राफी की कला और निखरी।
बिहारीजी की कैलिग्राफी प्रतिभा अद्भुत थी। उनके काम के प्रति लगन का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने बिना किसी गलती के इतने लंबे संविधान को पूरा किया। संविधान की कॉपी लिखने के लिए प्रेम नारायण को संविधान हॉल में ही एक कमरा दिया गया था। अब वह कमरा संविधान क्लब के रूप में जाना जाता है।
प्रेम नारायण बिहारी ने संविधान लिखने के लिए कोई पैसे नहीं लिए। बल्कि उनकी एक अनोखी शर्त थी ।और वो शर्त यह थी कि वह चाहते थे संविधान के हर पेज में अपना नाम। प्रेम नारायण बिहारी ने यह कहा था कि मेरे पास सबकुछ है मैं पैसे लेकर क्या करूंगा। मुझे कुछ देना ही है तो संविधान की किताब पर मेरा नाम दीजिए। बस फिर क्या था तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उकी यह बात मान ली और संविधान की मूल प्रति में उनका नाम लिखा गया साथ ही उनके गुरू यानी कि उनके दादा जी का भी नाम संविधान की मूलप्रति में लिखा गया है।
251 पन्नों का संविधान, 6 महीने का समय और भारत के एक योग्य कैलिग्राफर प्रेम नारायण बिहारी की मेहनत से हमें अपने संविधान की मूलप्रति मिली। भारत के इस सुयोग्य लेखक को हमारा नमन है।