Pandit Deendayal Upadhyay: जनता के लिए समर्पित नेता!

Pandit Deendayal Upadhyay:  भारतीय राजनीति में ऐसे नेता दुर्लभ हैं जिन्होंने समाज, संस्कृति और जनता के लिए अपना जीवन समर्पित किया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय उन्हीं में से एक थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा के नगला चंद्रभान में हुआ। माता-पिता का जल्दी निधन होने के कारण वे ननिहाल में बड़े हुए। बचपन से ही वे मेधावी छात्र और समाज सेवा के प्रति समर्पित थे। उनका जीवन सादगी और ईमानदारी की मिसाल था।

समर्पण की मिसाल जीवन

Pandit Deendayal Upadhyay ने 1937 में उन्होंने RSS में शामिल होकर जीवनभर प्रचारक के रूप में कार्य किया। उनके लिए राजनीति केवल सत्ता का माध्यम नहीं थी, बल्कि समाज और संस्कृति की सेवा का जरिया भी थी। उनकी यह सोच आज भी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण विकास और सामाजिक योजनाओं में झलकती है।

भारतीय जनसंघ में योगदान

देश की स्वतंत्रता के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की। 1952 में कानपुर में पहला जनसंघ अधिवेशन हुआ, जिसमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय महामंत्री बने। कम समय में उन्होंने कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किए, जिससे डॉ. मुखर्जी ने कहा: “अगर मुझे 2 दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारत की राजनीति बदल दूं।”

उनका उद्देश्य केवल संगठन को मजबूत करना नहीं था, बल्कि भारतीय समाज में सांस्कृतिक पुनरुत्थान और अखंड राष्ट्रीयता को स्थापित करना था। पंडित दीनदयाल ने हमेशा कहा कि भारत की पहचान उसकी संस्कृति और परंपरा में निहित है।

एकात्म मानववाद का सिद्धांत

Pandit Deendayal Upadhyay का सबसे बड़ा योगदान है ‘एकात्म मानववाद’। इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति, चाहे किसी भी धर्म या समुदाय का हो, भारत के समाज और संस्कृति का हिस्सा है। मुसलमान और ईसाई भी भारतीय जनजीवन के अंग हैं। किसी भी धर्म के आधार पर अलगाव या विभाजन को वे स्वीकार नहीं करते थे। उनकी यह सोच आज छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में ग्रामीण विकास और अंत्योदय योजनाओं की नींव बन चुकी है। एकात्म मानववाद का मूल सिद्धांत था कि आखिरी व्यक्ति तक विकास पहुंचे। यही कारण है कि पंडित दीनदयाल की सोच पर आधारित कई योजनाएं चल रही हैं, जैसे-

  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना
  • अंत्योदय अन्न योजना

नेतृत्व और राजनीतिक यात्रा

  • 1952 से 1967 तक, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के महामंत्री रहे।
  • उनकी संगठन कौशल और नेतृत्व क्षमता ने पार्टी को लगातार मजबूत बनाया।
  • 1967 में उन्होंने भारतीय जनसंघ के 14वें कालीकट अधिवेशन में अध्यक्ष पद संभाला।

हालांकि वे केवल 44 दिनों तक अध्यक्ष रहे, लेकिन उनके विचार और योगदान ने भारतीय राजनीति में अमिट छाप छोड़ी।

निधन और अमिट योगदान

11 फरवरी 1968 की रात, मुगलसराय स्टेशन पर उनका निधन हो गया। रेल यात्रा के दौरान उनका निरीह शरीर मिला। पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई और दिल्ली की सड़कों पर लोग पुष्पवर्षा कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आए। उनकी अंतिम यात्रा उनके जीवन की तरह ही जनप्रिय और जनता के लिए सुलभ रही।

छत्तीसगढ़ में पंडित दीनदयाल की विरासत

छत्तीसगढ़ में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार आज भी जीवंत हैं। उनके एकात्म मानववाद और अंतिम पंक्ति तक सेवा करने की सोच ने राज्य के सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • पंचायत स्तर पर स्वावलंबन और ग्रामीण विकास की नींव उनके विचारों से पड़ी।
  • राज्य में उनके नाम पर पंडित दीनदयाल ऑडिटोरियम और कई योजनाएं संचालित हैं।

Positive सार

Pandit Deendayal Upadhyay प्रचारक, संगठनकर्ता, विचारक और राष्ट्रभक्त थे। भले ही उनका जीवन छोटा था, लेकिन योगदान अमर है। उनका दृष्टिकोण और समाज सेवा का दर्शन आज भी हम सब के लिए प्रेरणा स्रोत है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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