Mini Mata: छत्तीसगढ़ की समाज सुधारक और ममतामयी जननेता

छत्तीसगढ़ की धरती को गौरवांवित करने वाली कई शख्सियतों में से एक हैं मिनी माता। उनका असली नाम मीनाक्षी देवी था, लेकिन उनका योगदान ऐसा रहा कि लोग उन्हें माता का दर्जा देने लगे। उनकी कहानी केवल उनके जीवन की कहानी नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़ के समाज, परंपराओं, और विकास की कहानी भी है। असम में जन्मी मिनी माता ने छत्तीसगढ़ में अपने जीवन का हर क्षण समाज सेवा और सुधार के लिए समर्पित किया।

कौन थी मिनी माता?

मिनी माता का जन्म 15 मार्च 1916 को असम के नवागांव में हुआ था। उनके पिता महंत बुधारीदास और माता देवमती बाई के जीवन में गरीबी और संघर्ष के अनेकों किस्से हैं। छत्तीसगढ़ में 1897-1899 के अकाल के कारण उन्हें और उनके पूर्वजों को असम के चाय बागानों में पलायन करना पड़ा। ये वो समय था जब छत्तीसगढ़ के कई लोग पलायन के लिए मजबूर हो गए थे। मिनी माता के परिवार की त्रासदीपूर्ण यात्रा ने उनके व्यक्तित्व पर गहरा असर डाला। विपरीत परिस्थितियों में उनकी माँ और पिता का निधन हो गया, लेकिन देवमती बाई के रूप में एक सहारा उन्हें मिला, जिन्होंने उन्हें ममता और शिक्षा दी।

सतनाम पंथ से है संबंध

मिनी माता का विवाह 1932 में सतनाम पंथ के गुरु अगमदास जी से हुआ। इस विवाह ने उन्हें असम से वापस छत्तीसगढ़ ला दिया, और यहाँ से उनकी सामाजिक और राजनैतिक यात्रा शुरू हुई। गुरु अगमदास जी के निधन के बाद, मिनी माता ने उनके कार्यों को आगे बढ़ाया और सामाजिक उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी दौरान उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का बीड़ा उठाया।

समाज उत्थान का उठाया बीड़ा

मिनी माता की दृष्टि में समाज का उत्थान ही उनका असली धर्म था। उन्होंने अपने समय के कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर साहसिक कदम उठाए। छत्तीसगढ़ के गांवों में स्वच्छता का संदेश फैलाना, महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित करना, दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाना, और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार करना – ये कुछ ऐसे कार्य थे जिन्होंने उन्हें जनता की प्रिय नेता बना दिया। उन्होंने न केवल समाज के निचले तबके को उठाने का प्रयास किया, बल्कि हरिजन बच्चों के लिए छात्रावास बनाने का भी काम किया ताकि वे शिक्षा प्राप्त कर सकें।

बनीं छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद

मिनी माता ने 1955 में रायपुर-बिलासपुर-दुर्ग संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव जीता और छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद बनीं। इसके बाद उन्होंने लगातार पांच बार सांसद का चुनाव जीता और समाज सेवा के प्रति उनकी निष्ठा को देशभर में सराहा गया। संसद में उन्होंने “अस्पृश्यता उन्मूलन” बिल को पास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका यह प्रयास देश में जातिगत भेदभाव को कम करने में मील का पत्थर साबित हुआ। 1967 में भिलाई स्टील प्लांट में मजदूरों की छंटनी के विरोध में उनकी रैली ने हज़ारों मजदूरों को राहत दिलाई और उनके अदम्य साहस को सबने सराहा।

महिला मंडल की स्थापना की

मिनी माता ने महिला और बाल कल्याण के क्षेत्र में अनगिनत योगदान दिए। उन्होंने महिला मंडल की स्थापना कर महिलाओं के उत्थान के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने का काम किया। ग्रामीण इलाकों में महिला शिक्षा के प्रति उनका विशेष ध्यान था, और उन्होंने इसके लिए कई अभियान चलाए। वे मानती थीं कि शिक्षित महिलाएं ही समाज में परिवर्तन ला सकती हैं।

Positive सार

उन्होंने अपनी ममता और बलिदान से छत्तीसगढ़ को न केवल बेहतर दिशा दी बल्कि समाज के हर तबके को एक नया दृष्टिकोण दिया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि जब तक हम दूसरों की भलाई के लिए निःस्वार्थ भाव से काम नहीं करते, तब तक समाज में सकारात्मक परिवर्तन संभव नहीं है। मिनी माता की स्मृति हमारे दिलों में सदैव जीवित रहेगी और उनके कार्यों की गूंज आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। क्या आप जानते हैं साल 2024 का राज्य अलंकरण मिनी माता सम्मान किन्हें मिला है अगर हां तो हमें कमेंट कर जरूर बताएं।

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Rishita Diwan

Content Writer

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