महात्मा गांधी ने जब अंग्रेजों के खिलाफ स्वाधीनता की लड़ाई शुरू की, तब महिला से लेकर पुरुष, बड़े से लेकर युवा और बच्चे सभी उनके साथ स्वतंत्रता के जन आंदोलन में शामिल हो गए। इन्हीं में से एक थीं जानकी देवी बजाज जानकी देवी का जन्म एक प्रतिष्ठित मारवाड़ी परिवार में 7 जनवरी 1893 में हुआ। 8 साल की छोटी सी उम्र में उनका विवाह जमनालाल बजाज के साथ हुआ, जो गांधी के बड़े अनुयायी और सहयोगी थे। जानकी देवी अपने पति के कार्यों से प्रभावित तो थीं, लेकिन बड़े संपन्न परिवार की बहु होने की वजह से उन पर काफी सामाजिक जिम्मेदारियां भी थीं। पर कहते हैं न होनी को भला कौन टाल सकता है। दरअसल बात तब की है, जब जानकी देवी 24 साल की थीं। उनके पति जमनालाल ने उन्हें एक खत लिखा और खत में गांधी जी के द्वारा किए जा रहे विदेशी सामानों और ऐशो आराम से जुड़ी चीजों के त्याग की बात का जिक्र किया। इस पत्र का जानकी देवी पर काफी असर हुआ। यहीं से वे स्वाधीनता संग्राम का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित हुई। उन्होंने अपने सभी गहने और महंगे कपड़े त्यागकर खादी को अपना लिया। लेकिन असली समस्या पर्दा प्रथा की थी। तब कुलीन समाज की औरतें बिना पर्दे के बाहर नहीं निकलती थीं। जानकी देवी ने सबसे पहले समाज में फैली पर्दा प्रथा की कुरीति पर काम किया। उन्होंने महिलाओं को जागरूक करना शुरू किया। शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी की भी थे हिमायती बनीं। अन्पुष्यता के खिलाफ आवाज उठाई छुआछूत के लिए काम किया। कई बार ऐसी परिस्थिति भी आई जब जानकी देवी को अपने ही समाज के लोगों से विरोध का सामना करना पड़ा पर वे रुका नहीं। उनके पति जमाता उनके कामों से खुश थे। उन्होंने ग्रामीण भारत की महिलाओं को जागरूक करने और स्वाधीनता के आंदोलनों को हर घर तक पहुंचाने का काम जानकी देवी को दिया। जानकी देवी ने स्वाधीनता संग्राम को तो बल दिया, साथ ही उन्होंने समाज की कुरीतियों को खत्म करने में भी अहम भूमिका निभाई। ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि आज की सशक्त महिलाओं के लिए जो आधार वर्षों पहले तैयार हुआ था उसकी नींव में कहीं न कहीं जानकी देवी का भी योगदान है।