• भारत की एक बेहतरीन फोटोग्राफर, जिन्होंने कई सालों तक छिपाई अपनी पहचान, इतिहास के पन्नों में दर्ज है नाम!
• महिला फोटोग्राफर की कहानी, जिनकी तस्वीरें बनीं इतिहास की गवाह, कभी महिला होने की वजह से नहीं मिलता था काम!
• पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में बनाई अपनी पहचान
Homai Vyaravala: साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ तब इलेस्ट्रेटेड वीकली मैग्जीन में एक ऐतिहासिक फोटो छपी, जिसमें भारत के आखिरी वायसराय लार्ड माउंट बेटन तिरंगे को सलामी दे रहे थे। वहीं इसी अखबार में दूसरी तस्वीर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की थी, जो लाल किले से पहली बार आजाद भारत को संबोधित कर रहे थे। इन दोनों की फोटो के नीचे फोटो क्रेडिट था ‘मानेकशां व्यारावाला’ की जो भारत के जाने-माने पत्रकार और फोटो जर्नलिस्ट थे, लेकिन कई सालों बाद ये बात सामने आई कि दरअसल ये ऐतिहासिक फोटो मानेकशां ने नहीं बल्कि उनकी पत्नी होमई व्यारावाला ने खींची थी। सिर्फ यही फोटोज नहीं बल्कि उस दौर की हजारों फोटोज होमई ने ली थी, जिसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अखबारों ने प्राथमिकता से प्रकाशित किया था। लेकिन होमई ने ऐसा क्यों किया,,,,
होमई व्यारावाला हिंदुस्तान की पहली महिला फोटोग्राफर हैं। दरअसल जब होमई ने फोटो जर्नलिज्म की शुरूआत की तो कोई भी उनकी तस्वीर नहीं छापना चाहता था। क्योंकि वे एक महिला थीं। मैंग्जीन या अखबार तक पहुंचने का एक ही रास्ता था कि होमई की तस्वीरें किसी पुरुष के नाम पर भेजी जाएं। होमई नाम नहीं अपना काम दिखाना चाहती थीं, बस फिर क्या था उन्होंने अपनी तस्वीरों को अपने पति मानेकशां व्यारावाला के नाम से भेजना शुरू कर दिया। 1995 में होमई ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि तब लोग काफी रूढ़िवादी थे, वे स्त्रियों के काम को सिरियसली नहीं लेते थे। लोगों को एक महिला का साड़ी पहने बड़ा सा कैमरा हाथ में लिए इधर-उधर भटकना, भीड़ से गुजरना बेहद अजीब दृश्य लगता था। शुरू-शुरू में तो लगता थो कि होमई लोगों को बेवकूफ बना रही हैं। होमई ने ये भी बताया कि लोगों के ऐसा करने को उन्होंने अवसर की तरह लिया। बाद में जब ये बात सामने आई कि फोटोज होमई ने ही लिए हैं तब सभी को पता चला कि वे अपने काम के प्रति कितनी गंभीर थीं। होमई की पहचान उनका काम था, 9 दिसंबर को एक मध्यम वर्गीय पारसी परिवार में जन्म लेने वाली होमई ने उस दौर में पढ़ाई की जब लड़कियों के स्कूल जाने की बात कोई सोच भी नहीं सकता था। लड़कियों को स्कूल कॉलेज नहीं जाना चाहिए, साइकिल नहीं चलानी चाहिए, भीड़ से नहीं गुजरनी चाहिए जैसी तमाम रूढ़ियों को होमई ने तोड़ते हुए अपना मुकाम हासिल किया। कई सालों तक होमई की तस्वीरें उनके पति और भाई के नाम से छपती थीं, बाद में उन्होंने अपने लिए एक अजीब सा लेकिन यूनिक नाम खोज लिया ‘डालडा-13’ उनकी बाद की तस्वीरें इसी नाम से छपती थीं। 1996 में मोनिका बेकर ने इसी नाम से होमाई के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्मई भी बनाई- ‘डालडा 13, पोर्ट्रेट ऑफ होमाई व्याथरवाला।’ आजाद भारत की पहली परेड, महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा जैसी हजारों तस्वीरों को तो लोग बखूबी जानते हैं पर ये नहीं जानते कि ये तस्वीरें, उस महिला ने ली हैं जो लोगों से लड़ते हुए साइकिल पर लंबी दूरी तय करती थीं, खादी की साड़ी पहनती थीं, जो इतिहास में अपना नाम अमर कर गईं ‘होमई व्यारावाला’