Godna: दुनियाभर में टैटू (Tattoo) की अपनी-अपनी कहानियां हैं, लेकिन भारत और खासकर छत्तीसगढ़ का गोदना (Godna) सिर्फ एक कला नहीं बल्कि पूरी संस्कृति और परंपरा की आत्मा है। यह आदिवासी और ग्रामीण जीवन का हिस्सा है, जिसने समय की हर आंधी को झेलते हुए अपनी पहचान बनाई है।
गोदना क्यों है खास?
छत्तीसगढ़ में गोदना को केवल सजावट नहीं माना जाता। यह स्त्रियों का स्थायी गहना, सुरक्षा का प्रतीक और धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ चिह्न है। पुराने समय में ऊँची जातियों ने इसे ‘अपवित्र’ मानकर अलग रखा, लेकिन आदिवासी और दलित समुदायों ने इसे अपनी अस्मिता का प्रतीक बनाया। मान्यता है कि गोदना मृत्यु के बाद भी आत्मा के साथ परलोक तक जाता है। विवाह से पहले या बाद में महिलाएँ हाथ, गला, पैर और माथे पर गोदना ज़रूर बनवाती थीं।
कौन बनाते हैं गोदना?
- छत्तीसगढ़ में गोदना बनाने का काम परंपरागत रूप से बादी जाति के लोग करते हैं।
- कुछ जगहों पर ओझा और जोगी समुदाय भी इसमें शामिल हैं।
- बादी समुदाय के लोग इसे धार्मिक आस्था से जोड़ते हैं और सींकरी देव, बूढ़ी माई, बूढ़ा देव की पूजा भी करते हैं।
जनजातियों और उनके पैटर्न
छत्तीसगढ़ की हर जनजाति का अपना अलग अंदाज़ है,
- बैगा महिलाएं, पूरे शरीर पर चौड़ी रेखाएँ, पहचान का प्रतीक।
- कुट्टिया कोंध स्त्रियां, चेहरे पर मोटी लकीरें, ताकि आकर्षण कम लगे और आक्रमणकारी दूर रहें।
- रामनामी समुदाय, पूरे शरीर पर ‘राम-राम’ लिखवाना, भक्ति और विद्रोह का प्रतीक।
- कंवर जनजाति, हाथी और पारंपरिक पैटर्न जैसे बुंदकिया, पोथी।
- रजवार महिलाएं, जट पैटर्न।
- लोकप्रिय मोटिफ़्स, सींकरी, डोरा, लवंगफूल, चिरई गोड़, चाँद, भैंसा सींघ और मछली कांटा।
गोदना और आस्था
- बस्तर के ओझा (नाग समुदाय) खासतौर पर कनैरा गांव में गोदना बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं।
- इनके पैटर्न, पहुंची, बिच्छू, पुतरा, तिकोना, हथौड़ी और चूड़ा।
- गोदना सिर्फ कला नहीं, बल्कि जनजातीय इतिहास और भावनाओं की भाषा है।
क्या गोदना इलाज भी था?
- पुराने लोग मानते थे कि गोदना सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि उपचार का तरीका भी था।
- बच्चों के हाथ-पांव अगर ठीक से काम न करें तो वहाँ गोदना गुदवाया जाता।
- संतान न होने पर महिलाओं की नाभि के नीचे गोदना किया जाता।
- देवताओं और प्रियजनों के नाम भी गोदवा लिए जाते।
कैसे बनती है गोदना की स्याही?
- गोदना बनाने की परंपरागत विधि बेहद रोचक है,
- कई सुइयाँ बाँधकर उन्हें काजल और तेल के घोल में डुबोया जाता।
- त्वचा में चुभोने के बाद घाव पर हल्दी और तेल का लेप लगाया जाता।
- यह काम प्रायः सुबह के समय किया जाता ताकि दर्द कम हो।
- आज भी ग्रामीण इलाकों में यह तरीका ज़िंदा है, लेकिन हाट-बाज़ारों में मशीन टैटू की लोकप्रियता बढ़ गई है।
आधुनिक दौर में गोदना
1950 से 1990 के बीच कई बार आदिवासियों को यह समझाया गया कि गोदना पिछड़ेपन और अशिक्षा की निशानी है। लेकिन सच्चाई यह है कि समय के बदलाव के बावजूद गोदना परंपरा आज भी जीवित है।, डिज़ाइनों में आधुनिकता आई है, लेकिन गोदना की आत्मा अब भी वही है-
गोदना छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर है। यह सिर्फ एक टैटू (Tattoo) नहीं, बल्कि जीवन की गाथा है – जिसमें विश्वास, डर, विद्रोह, गहने और अस्मिता सब दर्ज हैं।