Dholkal Ganpati: 3 हजार फीट की ऊंचाई कैसे स्थापित हुए ढोलकल गणेश!

Dholkal Ganpati: भारत की धार्मिक धरोहरें, अपने अंदर एक अद्वितीय इतिहास और असाधारण कथाएं समेटे हुए हैं। हमारे देश के मंदिर केवल पूजा और आराधना के स्थान नहीं हैं, बल्कि वे गाथाओं और किंवदंतियों के सजीव प्रतीक भी हैं। जितनी सच्ची इनकी कहानियां लगती है उतने साक्ष्य यहां के भौगोलिक बनावट भी देते हैं। ऐसे ही जगहों में से एक है छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के ढोलकल गणपति। जो अपने आप में अनोखी और रहस्यमयी है। इस जगह तक पहुँचने के लिए आपको केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक दृढ़ता की भी जरूरत होगी।

कहां है ढोलकल प्रतिमा?

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 350 किलोमीटर की दूरी तय कर जैसे ही आप बस्तर पहुंचेगे आप एक अविस्मरणीय यात्रा के साक्षी होंगे। जिला मुख्यालय जगदलपुर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी तय कर आप दंतेवाड़ा जिला पहुंचेंगे, जहां आपका सामना होगा विशाल बैलाडीला की पहाड़ियों से। इसी पहाड़ी पर स्थित है ढोलकल पहाड़ी जिस पर 3000 फीट की ऊंचाई पर विराजे हैं भगवान गणेश। 1000 साल पुरानी इस प्रतिमा को देखकर आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे कि इनती ऊंचाई पर इस मूर्ति को लाया कैसे गया होगा। क्या इन्हीं पत्थरों को काटकर इसका निर्माण किया गया या फिर किसी दैवीय शक्ति की वजह से भगवान गणेश इतनी ऊंचाई पर दर्शन देते हैं।

बस्तर के नागवंशी शासकों से संबंध

वहीं पुरातात्विक साक्ष्यों की बात करें तो प्राचीन मंदिर लगभग 1000 साल पुराना है। ये मूर्ति बस्तर में राज करने वाला छिंदकनागवंशी शासकों के शासन के दौरान बनवाया गया था। जिसकी छाप भगवान गणेश की मूर्ति पर दिखाई देता है। गणेशजी के उदर यानी पेट पर आप नाग की आकृति देख सकते हैं जो नागवंशी शासकों का प्रतीक था। वहीं भगवान गणेश की मूर्ति यहां ढोलक के आकार की है, जिस कारण इसे ‘ढोलकल गणपति’ के नाम से जाना जाता है। उनकी प्रतिमा में ऊपरी दाएं हाथ में फरसा, ऊपरी बाएं हाथ में टूटा हुआ दांत, निचले दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में मोदक है। यह मूर्ति न केवल उनके संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि इस पर्वत की शांति और सुंदरता के बीच विराजित गणपति बप्पा के अपार धैर्य और शक्ति की भी याद दिलाती है।

कैसे पहुंचे?

अगर आप भी ढोलकल गणपति के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको बता दें यहां तक पहुंचना जितना कठिन है, उतना ही आत्मिक और दिव्य अनुभव से भरपूर है। पहले आपको दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय पहुंचना होगा यहां से आपको 15-20 किलोमीटर की रोमांचक यात्रा मिलेगी जिसके बाद आपको 5 किलोमीटर की चढ़ाई कर ढोलकल पहाड़ी की पीक पर पहुंचना होगा। जहां से आप एक अद्वितीय और अविस्मरणीय नजारा देख सकेंगे। बता दें कि पहाड़ी पर चढ़ाई मुश्किल होती है इसीलिए वर्षा के बाद ठंड के मौसम में यहां आना बेहतर होता है।

ये भी देखें Ratanpur से Raipur कैसे बनी Chhattisgarh की राजधानी? 

पूरी कहानी देखने के लिए seepositive के youtube पर अनसुनी गाथा का विडियो जरूर देखें।

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Rishita Diwan

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