Devbaloda Shiv Temple: देवबलोदा गांव, जो दुर्ग जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर स्थित है, वहां एक ऐसा शिव मंदिर मौजूद है जो इतिहास, रहस्य और भक्ति का अद्भुत संगम है। यह सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि पुरातत्व और लोककथाओं का जीता-जागता उदाहरण है।
स्वयंभू शिवलिंग
इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि यहां शिवलिंग स्वयं भूगर्भ से उत्पन्न हुआ माना जाता है। यहां कोई स्थापना नहीं की गई बल्कि यह प्राकृतिक रूप से धरती से निकला है, जो इसे और भी दिव्य बनाता है।
मंदिर निर्माण से जुड़ी अनोखी लोककथा
लोकमान्यता के अनुसार, मंदिर का निर्माण छमासी की रातों में एक कारीगर ने अकेले ही किया था। हर रात वह पास के कुंड में स्नान करता, फिर नग्न अवस्था में मंदिर निर्माण में जुट जाता। उसकी पत्नी हर दिन उसके लिए भोजन लाती थी। लेकिन एक दिन पत्नी की जगह उसकी बहन खाना लेकर आई। यह देखकर वह कारीगर शर्म से कुंड में कूद गया और फिर कभी नहीं लौटा। कहा जाता है कि इसी कारण मंदिर का गुम्बद अधूरा रह गया।
एक ही पत्थर से बना है पूरा मंदिर
देवबलोदा शिव मंदिर की एक और खासियत यह है कि पूरा मंदिर एक ही पत्थर से तराशा गया है। यह 12वीं-13वीं शताब्दी के कलचुरी युग की उत्कृष्ट शिल्पकला का प्रतीक है। इसकी दीवारों और स्तंभों पर की गई नक्काशी आज भी लोगों को चौंका देती है।
एक नज़ारा इतिहास का
मंदिर की बाहरी दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, नृत्य करते हुए बैल, शिव के तांडव मुद्रा में चित्रण और अन्य जीवनदृश्यों की झलक मिलती है। ये शिल्प इस बात की कहानी कहते हैं कि उस समय लोगों की जीवनशैली कैसी रही होगी।
कभी नहीं सूखता मंदिर का कुंड
मंदिर परिसर में मौजूद कुंड की भी एक रहस्यमयी कहानी है। कहा जाता है कि इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखता और इसके स्रोत का आज तक पता नहीं चला। मान्यता है कि यह पानी एक सुरंग के जरिए आरंग इलाके से आता है। इस कुंड में बड़ी-बड़ी मछलियाँ और कछुए देखे जा सकते हैं। लोगों का यह भी कहना है कि एक सोने की नथनी पहनी मछली कभी-कभार नजर आती है।
चमत्कारिक हैं नाग-नागिन का जोड़ा
यहां के श्रद्धालु अक्सर मंदिर परिसर में नाग-नागिन के जोड़े को देखने का दावा करते हैं। कई बार इन्हें शिवलिंग के चारों ओर लिपटे हुए भी देखा गया है। हालांकि, अब तक यह जोड़ा किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है, जिससे लोगों की श्रद्धा और बढ़ जाती है।
देवबलोदा मंदिर क्यों है खास?
- यह मंदिर स्वयंभू शिवलिंग वाला है
- गुम्बद अधूरा है, एक दर्दभरी लोककथा के कारण
- एक ही पत्थर से बना पूरा ढांचा शिल्पकला की मिसाल
- कभी न सूखने वाला कुंड, जिसमें अनोखी मछलियां
- नाग-नागिन का जोड़ा रहस्य और भक्ति का संगम
- महाशिवरात्रि का मेला आस्था का महाउत्सव
महाशिवरात्रि पर लगता है विशाल मेला
महाशिवरात्रि के मौके पर यहां दो दिवसीय विशाल मेला आयोजित होता है। इस दिन श्रद्धालु रातभर कतार में खड़े होकर भोलेनाथ के दर्शन और पूजा करते हैं। यह मेला देवबलोदा की पहचान बन चुका है और यहां हर साल हजारों की संख्या में भक्त जुटते हैं।