Danteswari Mandir: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में स्थित है हिंदुओं के सबसे बड़ा तीर्थ माना जाने वाला 52वां शक्तिपीठ। मां दुर्गा के इस 52 वें शक्तिपीठ का नाम है दंतेवाड़ा की दंतेश्वरी मंदिर। ऐसी मान्यता है कि यहां पर माता सती के दांत गिरे थे यही वजह है कि यहां पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई। लेकिन इसके अलावा भी इस मंदिर की स्थापना की एक और कहानी है। जानेंगे अनसुनी गाथा में कहानी मां दंतेश्वरी की।
पौराणिक कथा
सतयुग में राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया। इस यत्जिर में उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। माता सति अपने पति का ऐसा अपमान सह नहीं पाईं। मता सती दुखी होकर यज्ञ की अग्नि में कूद दईं और अपने प्राण त्याग दिए। जब भगवान शिव को इसका पता चला, तो वो सती के शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे। इससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। सती के शरीर के 52 टुकड़े हुए जो धरती के अलग-अलग जगहों पर गिरे और छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में माता सती का दांत गिरा।
साहित्यिक कथा
माता दंतेश्वरी मंदिर की स्थापना की दूसरी कहानी जुड़ी है बस्तर के राजा अन्नमदेव से। शंखिनी-डंकिनी नदी के तट पर स्थित मां दंतेश्वरी का मंदिर 800 साल पुराना है। बस्तर के राजा अन्नम देव ने इस मंदिर की स्थापना की थी।ऐसा कहा जाता है कि अन्नमदेव को जब वारंगल से निर्वासित कर दिया गया। तब उन्होंने बस्तर की तरफ जाने का मन बनाया। जब राजा अन्नमदेव बस्तर की तरफ बढ़ रहे तब गोदावरी नदी पार करते समय उन्हें माँ दंतेश्वरी की प्रतिमा दिखाई दी। राजा ने प्रतिमा को किनारे रखकर उसकी पूजा-अर्चना की। इस पूजा से माँ दंतेश्वरी राजा अन्नमदेव से खुश होकर साक्षात प्रकट हुईं और उनसे कहा कि “जहां तुम जाओगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगी।” इसके बाद अन्नमदेव ने बस्तर विजय अभियान की शुरुआत की और बस्तर साम्राज्य की स्थापना की।
कैसे हुआ मंदिर का निर्माण?
मां दंतेश्वरी मंदिर के निर्माण की बात करें तो मंदिर का सबसे पहला निर्माण अन्नमदेव ने लगभग 800 साल पहले कराया था। ये मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित है, जो इसे एक विशेष धार्मिक और प्राकृतिक महत्व प्रदान करता है। मंदिर का जीर्णोद्धार 700 साल पहले पांडव अर्जुन कुल के वारंगल राजाओं ने करवाया था। इसके बाद 1932-33 में तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
होती है विशेष पूजा-अर्चना
ऐसा कहा जाता है कि मंदिर की पूजा पद्धति काफी विशेष है। माँ दंतेश्वरी की पूजा में किसी भी प्रकार की धातु की मूर्ति नहीं चढ़ाई जाती है। पूजा में मुख्यतः दूध, घी, चावल, नारियल, अगरबत्ती और फूल अर्पित किए जाते हैं। वहीं मंदिर के गर्भगृह में पुरुषों को सिर्फ धोती या लुंगी पहनकर जाने की अनुमति है। पैंट और पाश्चात्य कपड़े पहनकर मंदिर में जाना मना है।
तंत्र-मंत्र और साधना का केंद्र
जिस तरह मंदिर में दर्शन के रीति रिवाज हैं उसी तरह मंदिर में पहुंचने पर तंत्र-मंत्र और ज्योतिष विद्या का आभास अपने आप होने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दंतेश्वरी मंदिर के आसपास के क्षेत्र को तांत्रिक साधना का प्रमुख स्थल माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक माँ दंतेश्वरी का ये मंदिर उन आठ भैरव भाइयों का निवास स्थान है, जो यहाँ तांत्रिक सिद्धि प्राप्ति के लिए साधना करते थे। आज भी ये स्थान तांत्रिक साधना के लिए विख्यात है।
अनोखी वास्तुकला
मंदिर की वास्तुकला में भी तांत्रिक साधना के साक्ष्य दिखाई देते हैं। इसके अलावा मंदिर निर्माण के समय मंदिर में चार मुख्य भाग बनाए गए। गर्भगृह, महामण्डप, मुख्यमण्डप और सभामण्डप। मंदिर की बनावट में नागवंशीय शासकों की छाप दिखाई देती है। इसी तरह मंदिर के सामने पत्थर का गरुड़ स्तंभ भी स्थापित है। इस गरूड़ स्तंभ को लेकर मान्यता है कि ये स्तंभ भाग्य की भविष्यवाणी करता है। इसके अलावा मंदिर में कई प्राचीन मूर्तियां रखी गई है। जो बारसूर और दूसरे जगहों से लाकर रखी गई है।
कैसे पहुंचे दंतेवाड़ा?
मां दंतेश्वरी मंदिर सिर्फ एक आस्था का स्थल नहीं है बल्कि उत्सव और बस्तरीया संस्कृति का भी एक रूप है। यहां हर साल शारदीय और चैत्र नवरात्रि पर हजारों भक्त पदयात्रा कर माँ के दर्शन करने आते हैं। तो अगर आप भी मां दंतेश्वरी के दर्शन करना चाहते हैं तो यहां पहुंचने के लिए आपको फ्लाइट, बस, ट्रेन और निजी वाहन आसानी से मिल जाएंगे।
दंतेवाड़ा का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जगदलपुर है, इसके अलावा, रायपुर और विशाखापट्टनम भी प्रमुख हवाई अड्डे हैं। इन हवाई अड्डों से भी दंतेवाड़ा के लिए टैक्सी या बस सेवा उपलब्ध रहती है। दंतेवाड़ा सड़क मार्ग से छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों और राज्यों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
Positive सार
मां दंतेश्वरी मंदिर की यात्रा आपको एक अलग अनुभव देगी। यहां आप भारतीय परंपरा की विविधता और उसकी खूबसूरती को आत्मसात करेंगे साथ ही छत्तीसगढ़ की संस्कृति में आदिवासी परंपरा का संगम आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाएगा। आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं विडियो को लाइक और शेयर जरूर करें।